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शहीद दिवस पर विशेष : सरकारी रिकॉर्ड में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कब मिलेगा ‘शहीद’ का दर्जा (युद्धवीर सिंह लांबा)

  ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा। कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे, जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा।’ साल 1916 में मशहूर क्रांतिकारी कवि जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ जी द्वारा देशभक्ति की लिखी कविता की ये पंक्तियां […]

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कविता दिवस (नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान)

आज विश्व कविता दिवस है, सब अपने ढंग से मना रहे हैं। भारत में भी कविता दिवस मन रहा है, उत्तर भारत में कुछ ज्यादा ही मन रहा है। कोई कवि अपनी कविताएं बेच रहा है, कोई स्वयंभू कवि रचनाएं खरीद रहा है। कोई कवि अपनी कविता दान दे रहा है, कोई अपने नाम से […]

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कविता : उमंग (आशीष दीक्षित)

होली वैसे है तो उत्सव उमंगों का मन-मयूर में उल्लासित तरंगों का ऐसा हम मानते हैं साधारणतया ऐसा जानते हैं परन्तु यह वास्तव में ऐसा है कि मन तरंगित हो उठे रंगों से रंजित हो उठे एक नये अनुभव से एक नयी ऊर्जा से यह अनायास नहीं है यह मानव की साधारण वृत्ति का प्रयास […]

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‘पंडित का धर्म है अपने राष्ट्र पर सर्वस्व न्योछावर कर देना, मां शरण दो और पुनर्जन्म में यहीं भेजना’ (चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर विशेष)

उस दिन भी रोज़ की तरह सूरज निकला था। भारत का सूरज उन दिनों इसी आस में निकलता था कि एक दिन वह उसी स्वतंत्र भूमि का चरणस्पर्श करेगा जिस भूमि से ज्ञान का प्रकाश पूरे विश्व में फैला था। शासन के स्तर पर दास भारत के स्वतंत्र पुत्र नित की भांति एक उम्मीद से […]

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96वें जन्मदिवस (09 फरवरी) पर विशेष : आधुनिक बज्जिका के शिल्पकार महाकवि हरेंद्र सिंह ‘विप्लव’ (आचार्य चंद्र किशोर पराशर)

बिहार की लोक भाषाओं में बज्जिका का महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसी मान्यता है कि वैशाली गणराज्य के बज्जि जनपद के लोककंठ की भाषा बज्जिका ही थी। इसीलिए, इस लोकभाषा को सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने बज्जिका के रूप में नामित किया। आधुनिक बज्जिका को सजाने-संवारने में महाकवि हरेंद्र सिंह विप्लव का योगदान अग्रणी […]

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कविता : खुली किताब-सा हूँ… (नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान)

खुली किताब-सा हूँ… थोड़ा भोला-भाला अनाड़ी सा हूँ, देखोगे तो खुली किताब सा हूँ मैं। सबकी चालाकियों से वाकिफ़ हूँ, लुटने के बाद से अनमना सा हूँ मैं। यहां चमत्कार को है नमस्कार, सहज सरल को मिलती दुत्कार। स्वार्थियों की गठित हुई सरकार, परमार्थी को इज्जत की दरकार। थोड़ा भोला-भाला अनाड़ी सा हूँ, देखोगे तो […]

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कविता : साक्षात्कार (आशीष दीक्षित)

खोजता था मैं स्वयं को, पर सामने तू आ गया, क्षुद्र कन्टक जो चुभा था हृदय में, परिधान बन लहरा गया, छेड़ रहा था जब संगीत मैं इस हृदय की वीणा पर, राग था वो क्षुद्र और थी स्वर लहरी भी मर्मर, पर सुना नीरव सघन में जब अज्ञात-सा वह स्पंदन, काल की गति ठहरी […]

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कविता : कलगी बाजरे की (अज्ञेय)

हरी बिछली घास। दोलती कलगी छरहरी बाजरे की। अगर मैं तुमको ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका अब नहीं कहता, या शरद के भोर की नीहार-न्हायी कुँई, टटकी कली चंपे की, वग़ैरह, तो नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है या कि मेरा प्यार मैला है। बल्कि केवल यही : ये […]

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कविता : इंतजार तुम्हारा (अंजुम शर्मा)

जैसे नदी करती है इंतज़ार समुद्र का खो जाने के लिए जैसे पहाड़ करते हैं इंतज़ार बर्फ़ का सो जाने के लिए जैसे बादल करते हैं इंतज़ार नमी का बरस जाने के लिए जैसे रंग करते हैं इंतज़ार कूची का बिखर जाने के लिए जैसे फूल करते हैं इंतज़ार वसंत का जी उठने के लिए […]

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कहानी : पिंजरा (उपेन्द्रनाथ अश्क)

शांति ने ऊब कर काग़ज़ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उठकर अनमनी-सी कमरे में घूमने लगी। उसका मन स्वस्थ नहीं था, लिखते-लिखते उसका ध्यान बँट जाता था। केवल चार पंक्तियाँ वह लिखना चाहती थी; पर वह जो कुछ लिखना चाहती थी, उससे लिखा न जाता था। भावावेश में कुछ-का-कुछ लिख जाती थी। छ: पत्र वह […]