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RSS महासचिव के बाद शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा- ‘भारत में समाजवाद की जरूरत नहीं, धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं’

डेस्क :आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना से “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को हटाने पर बहस का आह्वान किया है। उन्होंने आपातकाल (1975-1977) के दौरान इन शब्दों को जोड़े जाने को बीआर अंबेडकर के मूल मसौदे से विचलन बताया है। प्रस्तावना में भारत को “संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” के रूप में वर्णित किया गया है। ये शब्द 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़े गए थे, जो 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे। इसके बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस बहस में कूद पड़े शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को कहा कि भारत में समाजवाद की कोई आवश्यकता नहीं है , साथ ही उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं है। चौहान की टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) ने बृहस्पतिवार को संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान करते हुए कहा था कि इन्हें आपातकाल के दौरान शामिल किया गया था और ये कभी भी डॉ बी आर आंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे।

आपातकाल के 50 साल पूरे होने के अवसर पर वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में चौहान ने कहा, ‘‘भारत में समाजवाद की जरूरत नहीं है… धर्मनिरपेक्ष हमारी संस्कृति का मूल नहीं है और इस पर जरूर विचार होना चाहिए।’’

आपातकाल लागू होने के 50 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों पर चर्चा का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था, संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े गए थे। इस पर चर्चा होनी चाहिए कि उन्हें रहना चाहिए या नहीं। उन्होंने कहा कि ये शब्द मूल रूप से संविधान में नहीं थे

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