स्थानीय

दरभंगा : आनंद मार्ग प्रचारक संघ का आध्यात्मिक एवं सामाजिक दर्शन पर आधारित तीन दिवसीय सेमिनार संपन्न

मुख्य वक्ता आचार्य प्रणवेशानंद ने ‘मानव शरीर एक जैविक यंत्र’, ‘पापस्य कारण त्रयम्’ एवं ‘प्राण धर्म’ पर रखे विस्तृत विचार

आनंद मार्ग स्कूल, लहेरियासराय में आयोजित संगोष्ठी में डॉ. चौरसिया, डॉ. अंजू, रत्नमुक्तानंद, स्नेह माया, शंभू मंडल आदि ने रखे विचार

दरभंगा : आनंद मार्ग प्रचारक संघ, दरभंगा के द्वारा ‘आध्यात्मिक एवं सामाजिक दर्शन’ विषय पर आधारित तीन दिवसीय सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता आचार्य प्रणवेशानंद ने ‘मानव शरीर एक जैविक यंत्र’, ‘पापस्य कारण त्रयम्’ एवं ‘प्राण धर्म’ विषय पर विस्तार से अपना विचार रखा। आनंद मार्ग स्कूल, लहेरियासराय में आयोजित सेमिनार में क्षेत्रीय सचिव एवं आनंद मार्ग स्कूल के प्रिंसिपल आचार्य रत्न मुक्तानंद, आचार्य रघुरामानंद, आचार्य परमानन्द, आचार्य रामकृपानंद, आचार्या आनंद उत्तीर्ण, आचार्या रचना, आनंद मार्ग स्कूल रानीपुर की प्राचार्या अनिमा आनंद, संस्कृत- प्राध्यापक डॉ आर एन चौरसिया, रसायनशास्त्र- प्राध्यापिका डॉ अंजू कुमारी, अरुण देव, योग प्रशिक्षक शंभू मंडल आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आयोजित गायन एवं तांडव नृत्य प्रतियोगिता में सफल छात्र-छात्राओं को अतिथियों द्वारा मेडल पहनाकर सम्मानित किया गया।

प्रणवेशानंद ने कहा कि सामाजिक एवं धार्मिक प्राणी होने के नाते मानव को केवल सामाजिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक नियमों का भी पालन करना चाहिए। जब कोई व्यक्ति सामाजिक या कानूनी नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे अपराधी कहा जाता है, पर जब वह धार्मिक या आध्यात्मिक नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे पापी कहा जाता है। उन्होंने पाप या अपराध के तीन मूल कारणों- भौतिक व मानसिक पोषण की कमी, संग्रहित पोषण का अनुप्रयोग तथा मानसिक व भौतिक जड़ता को रेखांकित किया। समाज में अत्यधिक संचय, अंधानुकरण और जड़ता को बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने आह्वान किया कि लोग मानवता को बचाने और समाज को गतिशील बनाने हेतु संगठित होकर काम करें।

मुख्य अतिथि डॉ. आरएन चौरसिया ने सफल सेमिनार हेतु आयोजकों को बधाई देते हुए पाप के तीन कारणों- काम, क्रोध एवं लोभ की विस्तार से चर्चा की और कहा कि ये तीनों मानव को अधर्म और अनाचाय की ओर ले जाता है। इनसे मुक्त होकर ही मानव को मोक्ष की प्राप्ति संभव है। इन शत्रुओं से बचने के लिए व्यक्ति को अपने जीवन में संयम, धैर्य और निष्पक्षता अपनाना चाहिए। इनसे बचकर ही धर्ममय और शांतिपूर्ण मानव जीवन संभव है। उन्होंने बताया कि काम- वासना से मुक्ति हेतु ध्यान, वैराग्य, सद्ग्रंथों का अध्ययन तथा सत्संग एवं आत्मचिंतन आदि उपाय हैं।

विशिष्ट अतिथि डॉ. अंजू कुमारी ने कहा कि विज्ञान की अपनी सीमित सीमा है। भौतिकता की समाप्ति के बाद ही आध्यात्मिक जगत प्रारंभ होता है। सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नति में बाधक व्यक्ति ही पापी माना जाता है। उन्होंने आनंद मार्ग को सहज, सरल और व्यावहारिक बताते हुए कहा कि यह दुखियों की सेवा कर समाज को एक सूत्र में बांध रहा है। आनंद मार्ग आम लोगों का मार्ग-दर्शन कर उन्हें समृद्धि एवं आनंद की ओर अग्रसर कर रहा है।
रांची से आयीं आचार्या आनंद स्नेह माया ने कहा कि महिलाएं न केवल जन्म देकर सृष्टि करती हैं, बल्कि बच्चों को संस्कार एवं संस्कृति का बोध भी कराती हैं। उन्होंने आह्वान किया कि सेमिनार में सीखी बातों को दूसरों को भी सिखाए। समाज की उन्नति के लिए महिलाएं भी आगे आकर काम करें। सेमिनार के समापन सत्र में मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, मधुबनी, दरभंगा, वैशाली, छपरा, सिवान, बेतिया, मोतिहारी आदि भुक्ति से आए प्रतिनिधियों ने गत छह महीने में संपादित कार्यों का विवरण तथा अगले 6 महीनों की कार्य- योजना भी प्रस्तुत की। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए आचार्य रत्नमुक्तानंद ने चिकित्सा शिविर, भोजन वितरण, नशा उन्मूलन, आग लगी, पौधा रोपण, ध्यान-योग शिविर, किताब-कॉपी वितरण, शरबत वितरण आदि की जानकारी देते हुए कहा कि आनंद मार्ग का कार्य क्षेत्र काफी विस्तृत एवं समाजोपयोगी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *