डेस्क : महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले पर अब सियासत गरमा गई है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि ‘हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं हैं’. उनका कहना है कि केंद्र सरकार देश में जबरन हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है. यह महाराष्ट्र में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा. राज ठाकरे ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि महाराष्ट्र की मातृभाषा मराठी है और इसकी इज्जत की जानी चाहिए. उन्होंने सवाल उठाया कि जब बाकी राज्यों में उनकी मातृभाषाएं प्रमुख हैं, तो फिर महाराष्ट्र में हिंदी को प्राथमिक कक्षा से अनिवार्य क्यों किया जा रहा है?
उन्होंने कहा कि भाषा के आधार पर ही भारत में राज्यों का गठन हुआ था, लेकिन अब उसी भावना को कुचला जा रहा है.
राज ठाकरे का आरोप है कि यह सब एक साजिश है, जिससे मराठी समाज को बांटा जाए और चुनाव में राजनीतिक फायदा उठाया जा सके. उन्होंने दावा किया कि सरकार की मंशा मराठी बनाम मराठी का संघर्ष खड़ा करना है. राज ठाकरे ने कहा कि राज्य की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है, किसानों को कर्जमाफी नहीं मिली, नौजवान बेरोजगार हैं और अब जनता का ध्यान भटकाने के लिए यह ‘हिंदी थोपो अभियान’ चलाया जा रहा है.
उन्होंने सवाल किया कि क्या केंद्र सरकार तमिलनाडु, केरल या कर्नाटक में भी हिंदी को जबरदस्ती लागू करने की हिम्मत दिखा सकती है? अगर नहीं, तो फिर महाराष्ट्र को ही क्यों टारगेट किया जा रहा है?
राज ठाकरे ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने यह फैसला वापस नहीं लिया, तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सड़क पर उतरकर इसका विरोध करेगी. उन्होंने यहां तक कह दिया कि स्कूलों में हिंदी किताबें नहीं बिकने दी जाएंगी और स्कूल प्रशासन को साफ संदेश दिया कि छात्रों को जबरदस्ती हिंदी न पढ़ाई जाए।
राज ठाकरे ने मराठी मीडिया से भी अपील की है कि वे इस मुद्दे पर खुलकर आवाज उठाएं और सरकार की इस नीति का विरोध करें. उन्होंने कहा कि अगर आज भाषा थोपी गई, तो कल और भी जबरन फैसले थोपे जाएंगे.
अंत में उन्होंने सरकार से कहा है कि वह जनता की भावनाओं का सम्मान करे और इस निर्णय को तुरंत वापस ले.