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बिहार : बिहार पुलिस महकमे में कई उथल-पुथल, कई पुलिसकर्मियों की रिटायरमेंट तो कुछ पर कसी नकेल

बिहार : बिहार पुलिस ने 50 साल से ज्यादा उम्र के पुलिसकर्मियों को जबरन रिटायर करने का फैसला किया है. इस कदम का उद्देश्य पुलिस विभाग में कार्यशील और फिट कर्मियों को बनाए रखना है. पुलिस मुख्यालय ने सभी एसएसपी, एसपी और रेल पुलिस के एसपी को एक आदेश जारी कर इस संबंध में एक लिस्ट बनाने को कहा है.

यह लिस्ट उन पुलिसकर्मियों की होगी जिन्हें इस साल 31 मार्च तक रिटायर किया जा सकता है, जिनमें से कुछ गंभीर बीमारियों की वजह से ड्यूटी नहीं कर पा रहे हैं.

इस आदेश के दायरे में सिपाही से लेकर डीएसपी स्तर तक के अफसरों को शामिल किया जाएगा. पुलिस मुख्यालय ने इस लिस्ट को तैयार करने में पुलिसकर्मियों के ट्रैक रिकॉर्ड को आधार बनाने का फैसला किया है, जिससे विभाग में हलचल मच गई है. पुलिसकर्मी इस बात से चिंतित हैं कि उनके खिलाफ पूर्वाग्रह या गलत नीयत से उनका नाम जबरन रिटायरमेंट लिस्ट में डाला जा सकता है. बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय सिंह ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि इस आदेश से भेदभाव होने की संभावना है, जिससे पुलिस फोर्स का मनोबल गिर सकता है.

विवाद 

एक सीनियर पुलिस अफसर ने बताया कि यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि बिहार पुलिस में केवल वही कर्मी काम करें जो विभाग के मानक पर खरे उतरें और जो फिट हों. हालांकि, अफसरों ने यह भी बताया कि कई पुलिसकर्मी पटना में पोस्टिंग की इच्छाशक्ति रखते हैं और वे अपनी बीमारी या परिवार के कारण पोस्टिंग के लिए अनुरोध करते हैं.

केंद्र सरकार का रिटायरमेंट कदम

केंद्र सरकार ने पहले भी भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे 15 अधिकारियों को जबरन रिटायर किया था. बिहार पुलिस के बारे में कहा जा रहा है कि यह प्रक्रिया केंद्रीय स्तर पर लागू की जा रही है. पुलिस एसोसिएशन के नेताओं का मानना है कि यदि कोई पुलिसकर्मी पूरी तरह से अनफिट हो और कार्य नहीं करना चाहता हो तो उसे सहानूभूतिपूर्वक हटाया जा सकता है, लेकिन इसे सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए.

बिहार में लगभग एक लाख पुलिसकर्मी काम कर रहे हैं, जिनमें 30,000 जमादार, दारोगा और इंस्पेक्टर शामिल हैं. बिहार सर्विस रूल्स के अनुसार, 50 साल से ऊपर के पुलिसकर्मियों की मेडिकल बोर्ड से जांच करवाई जाएगी और बोर्ड की सिफारिश पर ही रिटायरमेंट या सेवा में बने रहने का निर्णय लिया जाएगा. हालांकि, 2020 में इसी तरह का एक आदेश दिया गया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका था. अब देखना यह है कि चुनावी साल में इस आदेश का क्या असर होता है.

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