साहित्य

96वें जन्मदिवस (09 फरवरी) पर विशेष : आधुनिक बज्जिका के शिल्पकार महाकवि हरेंद्र सिंह ‘विप्लव’ (आचार्य चंद्र किशोर पराशर)

बिहार की लोक भाषाओं में बज्जिका का महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसी मान्यता है कि वैशाली गणराज्य के बज्जि जनपद के लोककंठ की भाषा बज्जिका ही थी। इसीलिए, इस लोकभाषा को सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने बज्जिका के रूप में नामित किया।

आधुनिक बज्जिका को सजाने-संवारने में महाकवि हरेंद्र सिंह विप्लव का योगदान अग्रणी और अप्रतिम है। महाकवि विप्लव ने ‘कच-देवयानी’ महाकाव्य की रचना कर बज्जिका को प्रथम महाकाव्य का अवदान तो दिया ही, साथ ही संस्मरण, रेखाचित्र, ललित निबंध, नाटक एवं व्यंग्य आदि कई विधाओं में उन्होंने दर्जनों पुस्तकों का लेखन किया और बज्जिका को समृद्ध बनाया। ‘सबसे अगारी हम्मर बैलगाड़ी’ उनके ललित निबंधों का लोकप्रिय संग्रह है। इसी प्रकार, ‘ऊलार हो गेल जिनगी के गाड़ी’ व्यंग्य विधा में लिखा गया बज्जिका का पहल व्यंग्य संग्रह है। ‘बज्जिका लोक तरंग’ नामक पुस्तक में उन्होंने आधुनिक शैली में बज्जिका लोकगीतों की रचना की है जो अत्यंत लोकप्रिय हुई और आकाशवाणी एवं दूरदर्शन द्वारा उनके गीतों को लोक गायकों के स्वर में प्रस्तुत किया गया। ‘भकुआ रे भकुऐले रहबे’ शीर्षक से उन्होंने अपनी जीवनी का लेखन बज्जिका में किया है। महाकवि विप्लव ने इन विधाओं के अतिरिक्त भी अन्य कई विधाओं में दो दर्जन पुस्तकों का प्रणयन बज्जिका भाषा में किया है जो इस भाषा की धरोहर हैं। प्रोफेसर हरेंद्र सिंह विप्लव की सबसे लोकप्रिय कृति का नाम है ‘कच-देवयानी’ जो महाभारत की कथा पर आधारित है। इस महाकाव्य की एक विशेषता यह भी है कि इसकी रचना बज्जिका में की गई है। परंतु, इसमें तत्सम शब्दों का बड़ा ही विलक्षण प्रयोग कर इसे आधुनिक रूप दिया गया है, ताकि अबज्जिका भाषी भी इस कृति को पढ़कर समझ सकें।

बज्जिका के साहित्यकारों को एक मंच पर लाने एवं बज्जिकान्चल के संस्कृतिकर्मियों को भी सामाजिक सरोकारों से जोड़ने के लिए प्रोफेसर विप्लव ने सन 1965 में वैशाली जिला अंतर्गत लालगंज में अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन की स्थापना की, जिसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय केदार पांडे एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय ललितेश्वर प्रसाद शाही सहित अनेक मूर्धन्य राजनेता, संस्कृतिकर्मी और समाजसेवी भी उपस्थित हुए थे। उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन बज्जिका भाषा-भाषियों का प्रथम सामाजिक-साहित्यिक संगठन है।

90 के दशक में प्रोफेसर विप्लव ने बज्जिका पत्रकारिता को समृद्ध बनाने के लिए ‘जय बज्जिका’ नाम से त्रैमासिक पत्रिका का संपादन शुरू किया, जिसका मैं प्रबंध संपादक हुआ करता था। इस प्रकार प्रोफेसर हरेंद्र सिंह विप्लव ने बज्जिका साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सरोकारों को संपुष्ट करने और समृद्ध बनाने में अद्वितीय भूमिका निभाई जो वंदनीय है।

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