डेस्क : अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर लगातार 7 महीने बिताने के बाद अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को एक अप्रत्याशित चुनौती का सामना करना पड़ रहा है: वह चलना भूल गई हैं. हाल ही में छात्रों के साथ एक बातचीत में सुनीता ने स्वीकार किया कि वह यह याद करने की कोशिश कर रही हैं कि चलना कैसा लगता है. शून्य गुरुत्वाकर्षण में महीनों तक तैरने के बाद, सुनीता ने न तो बैठने का अनुभव किया और न ही लेटने का. अब वह धरती पर ठोस जमीन पर चलने की अनुभूति को फिर से जोड़ने के लिए संघर्ष कर रही हैं.
सुनीता विलियम्स और उनके साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विलमोर को मूल रूप से सिर्फ एक महीने के मिशन पर भेजा गया था, लेकिन तकनीकी कारणों और सुरक्षा चिंताओं के कारण उनका मिशन 7 महीने तक खिंच गया. इस अप्रत्याशित विस्तार ने उन्हें लगातार शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने के लिए मजबूर कर दिया, जिसका शारीरिक और मानसिक प्रभाव गहरा रहा.
अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से मांसपेशियों और हड्डियों का कमजोर होना, दृष्टि संबंधी समस्याएं, और शरीर के संतुलन में बदलाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं. सुनीता का चलने में संघर्ष करना इन्हीं प्रभावों का एक उदाहरण है. यह सवाल उठाता है कि क्या मंगल जैसे लंबे मिशनों के लिए मानव शरीर तैयार है?
अपने मिशन के अप्रत्याशित विस्तार के बावजूद, सुनीता विलियम्स ने अपने परिवार के साथ जुड़ाव बनाए रखा. उन्होंने बताया कि वह रोजाना अपनी मां से बात करती हैं ताकि उनका संबंध बना रहे. यह बात उनके भावनात्मक संघर्ष को दर्शाती है, जो लंबे अंतरिक्ष मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के सामने आता है.
सुनीता और बुच को स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान के साथ ISS पर भेजा गया था, लेकिन यान में सुरक्षा संबंधी समस्याओं के कारण उनकी वापसी में देरी हुई. NASA ने उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हें ISS पर ही रोकने का फैसला किया. अब उनकी जगह SpaceX के क्रू-10 मिशन के अंतरिक्ष यात्री मार्च या अप्रैल में पहुंचेंगे, जिसके बाद ही सुनीता और बुच धरती पर लौट पाएंगे.
सुनीता विलियम्स का यह अनुभव भविष्य के लंबे अंतरिक्ष मिशनों, जैसे मंगल पर मानवयुक्त उड़ान, के लिए एक चेतावनी है. अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के शारीरिक और मानसिक प्रभावों को समझना और उन्हें कम करने के उपाय खोजना अब और भी जरूरी हो गया है.
सुनीता विलियम्स का संघर्ष न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक सबक है. यह हमें याद दिलाता है कि अंतरिक्ष की अनंत गहराइयों में यात्रा करना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. भविष्य के मिशनों के लिए, हमें न केवल तकनीकी बल्कि मानवीय पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा.