मंडन-शंकराचार्य शास्त्रार्थ ने मिथिला की तर्कशक्ति, विद्वता और शास्त्रीय परंपरा की श्रेष्ठता को पूरे भारतवर्ष में दिलाई प्रसिद्धि- डॉ. आदित्य कुमार

दरभंगा : मिथिला की दार्शनिक परंपरा प्राचीन एवं समृद्ध रही है। मिथिला के प्रसिद्ध दार्शनिक मंडन मिश्र प्रसिद्ध मीमांसक कुमारिल भट्ट के शिष्य थे, जिनका जीवन शास्त्रार्थ एवं विद्वता का श्रेष्ठ उदाहरण है। पूर्व मीमांसा के श्रेष्ठ विद्वान मंडन मिश्र का मानना था कि कर्म ही धर्म का मूल आधार है। उनका आदि शंकराचार्य से वाद-विवाद भारतीय दार्शनिक इतिहास की महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इस शास्त्रार्थ ने मिथिला की तर्कशक्ति, विद्वता और शास्त्रीय परंपरा की श्रेष्ठता को पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध किया। उक्त बातें सी एम कॉलेज, दरभंगा के दर्शनशास्त्र-प्राध्यापक डॉ आदित्य कुमार सिंह ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी संस्कृत विभाग में संचालित मंडन मिश्र पीठ तथा डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्त्वावधान में “भारतीय दर्शन और मंडन मिश्र” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में कही।

उन्होंने कहा कि वेद भारतीय ज्ञान-परंपरा, धर्म-दर्शन तथा ज्ञान-विज्ञान का मूल आधार स्तंभ है, जिसे भारतीय परंपरा में अपुरुषेय तथा शाश्वत माना गया है। यह गुरु से शिष्य में श्रुति-परंपरा के माध्यम से ही अध्ययन कराया जाता था। डॉ सिंह ने मंडन मिश्र के सभी ग्रंथों की विस्तार से चर्चा करते हुए प्रसन्नता व्यक्त किया कि विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग मिथिला की प्राचीन ज्ञान-परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।

मंडन मिश्र पीट के समन्वयक एवं सेमिनार के संयोजक डॉ. आरएन चौरसिया ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि मिथिला भारत के प्राचीनतम ज्ञान केन्द्रों में से एक रहा है। जहां शास्त्रार्थ में भारती जैसी विदुषी का निर्णायक होना मिथिला की श्रेष्ठ ज्ञान-परंपरा में स्त्री विद्वता की सशक्त भूमिका को दर्शाता है। मंडन मिश्र ने तर्क और भाष्य शैली को सुगठित रूप से प्रस्तुत किया और मीमांसा-वेदान्त के जटिल विषयों को सरल एवं प्रभावी रूप से व्यक्त किया। कहा कि मंडन मिश्र का व्यक्तित्व और कार्य मिथिला की शैक्षणिक परंपरा के मूल स्तंभ माने जाते हैं। उनके विचारों ने मीमांसा को वेदांत से जोड़ा, जहां कर्म ज्ञान के सहायक माने गए। उनके योगदान ने भारतीय दर्शन में कर्म-ज्ञान संवाद को समृद्ध किया। अध्यक्षीय संबोधन में पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने मंडन मिश्र पीठ के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मिथिला के दार्शनिकों में मंडन मिश्र का नाम विशेष आदर से लिया जाता है। वे न केवल मीमांसा और वेदांत के मर्मज्ञ विद्वान थे, बल्कि मिथिला की बौद्धिक संस्कृति के प्रतिनिधि भी माने जाते हैं।

स्वागत संबोधन में संस्कृत- प्राध्यापिका डॉ. ममता स्नेही ने कहा कि मंडन मिश्र की मीमांसा दर्शन की गहराई, अद्वैत वेदान्त में उनका योगदान, असाधारण तर्कशक्ति और शास्त्रार्थ की उज्ज्वल परंपरा ने मिथिला को भारतीय दार्शनिक संसार में विशिष्ट स्थान दिलाया। वे मिथिला की ज्ञान-परंपरा के महान वाहक और भारतीय दर्शन के शिखर पुरुष थे।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि प्राचीन काल से ही मिथिला के विद्वानों एवं दार्शनिकों ने अपनी मजबूत सत्ता स्थापित किया है। उन्होंने मंडन मिश्र के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उन्होंने अनेक बौद्धों को परास्त किया था। संगोष्ठी का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ, जबकि शोधार्थी कल्पना प्रधान ने मंत्रोचार किया। वहीं अतिथियों का स्वागत पाग एवं दुपट्टा से किया गया।

संगोष्ठी में एलएनजे कॉलेज, झंझारपुर की प्राध्यापिका डॉ रश्मि दत्ता एवं शिव शंकर लाभ, डॉ पंकज कुमार, शिक्षक सुजय पांडे एवं अमित कुमार झा, शोधार्थी- सदानंद विश्वास, कल्पना प्रधान एवं बालकृष्ण कुमार सिंह, कृष्ण मोहन भगत, जिग्नेश कुमार, नेहा कुमारी, मंजू अकेला, योगेन्द्र पासवान तथा उदय कुमार उदेश्य सहित 60 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे, जिन्हें फाउंडेशन की ओर से प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।
