
दरभंगा : शिक्षा की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती रहती है। पश्चिमी देश में शिक्षा मात्र सशक्तिकरण का माध्यम है, परंतु भारतीय परंपरा में सशक्तिकरण के साथ शिक्षा को मुक्ति का माध्यम भी माना गया है। यदि विद्या प्राप्ति से विनम्रता नहीं आती है तो वह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकती है। विनम्रता हमारे सैकड़ों बंद रास्तों को भी खोलने में सक्षम है। गीता के अनुसार शिक्षा प्राप्ति से लोग माया, मोह आदि बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। उक्त बातें बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति आरिफ मोहम्मद खां ने डॉ नागेन्द्र झा स्टेडियम में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के 11 वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कही।

कुलाधिपति ने उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को बधाई एवं शुभकामना देते हुए कहा कि आज का दिन इन छात्र-छात्राओं, उनके माता-पिता एवं शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि डिग्री प्राप्ति के बाद अब छात्र अपने पैरों पर खड़े होंगे। धर्म आस्था की अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन माध्यम है जो हमें सही- गलत एवं नैतिक-अनैतिक का फर्क बतलाता है। गीता हमें अच्छे जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है। सफल जीवन जीने का रहस्य गीता में वर्णित है, जिसकी आज पश्चिमी देशों के लोग भी अनुकरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब हमारी आत्मा नियंत्रित होती है, तब वह मित्र बन जाती है, परंतु जब वह हमारे नियंत्रण में नहीं हो तो वह हमारा शत्रु बन जाती है। राज्यपाल ने कहा कि सिर्फ पुस्तकीय शिक्षा से ही हम पूर्ण नहीं हो सकते, व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी है। हम अपनी महत्वाकांक्षाएं पूर्ण करने के लिए मर्यादा की सीमा को न तोड़ें। लघु बुद्धि वालों में धन, विद्या या कुल आदि नशा पैदा करते हैं, परंतु सात्विक प्रवृत्ति वालों में ये आत्मगौरव का भाव उत्पन्न करते हैं। विनम्रता में हम जितना झुकते हैं, दुनिया उतना ही हमें ऊपर उठाती है।

कुलाधिपति ने कहा कि मिथिला ज्ञान एवं आध्यात्मिकता की धरती रही है। यहां जो शास्त्रार्थ हुए हैं, दुनिया उनका रहस्य जानने की कोशिश कर रही है। उन्होंने दीक्षांत समारोह को छात्रों के जीवन का विशेष महत्वपूर्ण दिन बताया। स्वामी विवेकानन्द के कथनों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी जीना चाहिए। इस दीक्षांत समारोह से डिग्रीधारी छात्रों की औपचारिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण चरण पूरा हुआ है, परंतु अर्जित ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाना भी उनका परम दायित्व है। तैत्तिरीयोपनिषद् में भी दीक्षांत समारोह का उल्लेख है, जिसकी दीक्षा आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने विश्वविद्यालय की उपलब्धियां पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा का लक्ष्य छात्रों को अच्छा इंसान एवं सुयोग्य नागरिक बनाना है। हमारी शिक्षा प्रणाली भारतीय संस्कृति पर आधारित है जो हमें चरित्रवान बनाने के साथ ही नैतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाती है।
