तंजानिया में चुनावी अराजकता थमने का नाम नहीं ले रही। मुख्य विपक्षी पार्टी चाडेमा ने सनसनीखेज दावा किया है कि तीन दिनों के विरोध प्रदर्शनों में 700 से ज्यादा लोग मारे गए।यह आरोप ऐसे समय में आया है जब देश की पहली महिला राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन ने बुधवार (30 अक्टूबर) को हुए विवादास्पद चुनावों में भारी जीत हासिल की है।
लेकिन सड़कों पर उतरी भीड़, इंटरनेट शटडाउन और कर्फ्यू ने पूरे देश को युद्धक्षेत्र में बदल दिया है। आखिर तंजानिया में हो क्या रहा है? आइए पूरी कहानी समझाते हैं…
चुनावी धांधली के आरोप और हिंसा की शुरुआत दार-एस-सलाम सहित कई शहरों में मतदान के दौरान भारी अव्यवस्था देखी गई। दो प्रमुख विपक्षी दलों को चुनाव से बाहर रखा गया, जिसके बाद गुस्साई भीड़ सड़कों पर उतर आई। प्रदर्शनकारियों ने पोस्टर फाड़े, पुलिस पर हमला किया और मतदान केंद्रों को निशाना बनाया। नतीजा? इंटरनेट बंद और कर्फ्यू लगा दिया गया।ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, 272 निर्वाचन क्षेत्रों में से 120 के शुरुआती नतीजों में राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन को लगभग 97% वोट मिले हैं। यह जीत उनकी पार्टी के आंतरिक आलोचकों को चुप कराने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। लेकिन विपक्ष इसे चुनावी धांधली बता रहा है।
विपक्ष का दावा: 700 मौतें, चाडेमा के आंकड़े चौंकाने वाले दार-एस-सलाम में अकेले 350 मौतें हुई हैं, म्वांजा में 200 से ज्यादा। देश के बाकी इलाकों को मिलाकर कुल आंकड़ा लगभग 700 पहुंच गया है।’ 31 अक्टूबर को भी वाणिज्यिक केंद्रों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें जारी रहीं। चाडेमा का कहना है कि यह हिंसा सरकारी दमन का नतीजा है।
मौतों के आंकड़ों में भारी अंतर: कौन कह रहा है सच?हालांकि मौतों के आंकड़ों पर गहरा मतभेद है:
विपक्ष (चाडेमा): 700+ मौतें
एमनेस्टी इंटरनेशनल: कम से कम 100 मौतें
संयुक्त राष्ट्र: ‘विश्वसनीय रिपोर्टों’ के आधार पर 10 मौतें
यह अंतर सवाल उठाता है – सच क्या है? कई अस्पताल और क्लिनिक पत्रकारों से बात करने से डर रहे हैं। सरकारी आंकड़े गायब हैं, और पुलिस प्रवक्ता डेविड मिसिमे व सरकारी प्रवक्ता गेर्सन मिसिग्वा से संपर्क नहीं हो पाया।
सेना की चेतावनी: ‘यह अस्वीकार्य है’विरोध के नाम पर निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना अस्वीकार्य है। हम इसे जारी नहीं रहने देंगे।’ उन्होंने प्रदर्शनों को आपराधिक गतिविधि करार दिया।
तंजानिया में इंटरनेट बंदी और कर्फ्यू जारी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है, लेकिन सरकारी खामोशी सवालों को और गहरा रही है। क्या यह लोकतंत्र का अंत है या सिर्फ एक अस्थायी संकट? आने वाले दिन बताएंगे।
