बिहार की राजनीति इस बार एक नए मोड़ पर खड़ी नज़र आ रही है। पारंपरिक रूप से सत्ता और विपक्ष के बीच सीधी लड़ाई दिखने के बजाय अब समीकरण बदलते नज़र आ रहे हैं।
राजद, जो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी है, आंतरिक कलह में उलझी हुई है। तेजस्वी यादव और उनके भाई के बीच मतभेद की खबरों के बाद हाल ही में रोहिणी आचार्य और संजय यादव के बीच विवाद खुलकर सामने आया। आरोप-प्रत्यारोप के इस सिलसिले से पार्टी अभी तक बाहर नहीं निकल सकी है।
इसी बीच जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर भाजपा और जदयू के दिग्गज नेताओं पर सीधा हमला बोल रहे हैं। उनके निशाने पर भाजपा के सम्राट चौधरी, दिलीप जायसवाल, संजय जायसवाल, मंगल पांडेय और जदयू के अशोक चौधरी हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मौजूदा हालात में सीधी टक्कर भाजपा और जनसुराज के बीच बनती दिख रही है।
कांग्रेस का हाल अलग है। वह राजद के साथ रहते हुए भी सक्रिय भूमिका निभाने के बजाय पिछलग्गू बनी हुई प्रतीत हो रही है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर यह विषयवस्तु सोशल मीडिया से निकलकर जमीनी स्तर तक पहुंच गया तो बिहार का चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदल सकता है। चौराहों और चाय की दुकानों पर पहले से ही चर्चाओं का यही मुख्य विषय बन चुका है।
दिल्ली की राजनीति का उदाहरण भी दिया जा रहा है, जब अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने परंपरागत दलों को चुप करा दिया था और लोग नए विकल्प की ओर आकर्षित हुए थे।
दिलचस्प यह है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, जो अक्सर तेजस्वी यादव पर ‘जंगलराज’ और ‘नौवीं फेल’ कहकर हमला बोलते रहे हैं, उन्हीं पर प्रशांत किशोर ने पलटवार किया है। पीके ने दावा किया है कि सम्राट चौधरी खुद ‘सातवीं फेल’ और ‘हत्या के आरोपी’ हैं। इस आरोप पर अब तक भाजपा या उनके समर्थक कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए हैं।
निशांत झा