डेस्क : सरकार ने हाल ही में खाने के तेल की इंपोर्ट ड्यूटी में इजाफा किया. उसके बाद फूड ऑयल प्रोसेसर्स से रिटेल प्राइस ना बढ़ाने को कहा है. इसका कारण कम शुल्क पर भेजे गए फूड ऑयल का पर्याप्त स्टॉक का उपलब्ध होना है. खाद्य मंत्रालय ने कहा कि कम शुल्क पर आयातित स्टॉक आसानी से 45-50 दिनों तक चलेगा और इसलिए प्रोसेसर्स को मैक्सीमम रिटेल प्राइस यानी एमआरपी बढ़ाने से बचना चाहिए. पिछले सप्ताह, केंद्र ने घरेलू तिलहन कीमतों का सपोर्ट करने के लिए विभिन्न खाद्य तेलों पर मूल सीमा शुल्क में वृद्धि की थी.
इस महीने की 14 तारीख से प्रभावी, कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे पाम तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को शून्य से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया गया है. इससे कच्चे तेलों पर प्रभावी शुल्क 27.5 फीसदी हो गया है. इसके अतिरिक्त, रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 12.5 फीसदी से बढ़ाकर 32.5 फीसदी कर दिया गया है, जिससे रिफाइंड तेलों पर प्रभावी शुल्क 35.75 प्रतिशत हो गया है.
मंगलवार को खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए), इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईवीपीए) और सोयाबीन ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (एसओपीए) के प्रतिनिधियों के साथ मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की. एक सरकारी बयान में कहा गया है कि प्रमुख खाद्य तेल संघों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है कि शून्य प्रतिशत और 12.5 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) पर आयातित खाद्य तेल स्टॉक की उपलब्धता रहने तक प्रत्येक तेल का एमआरपी बरकरार रखा जाए और अपने सदस्यों के साथ इस मुद्दे को तुरंत उठाया जाए.
बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार को यह भी पता है कि कम शुल्क पर आयातित खाद्य तेलों का करीब 30 लाख टन स्टॉक है जो 45 से 50 दिनों की घरेलू खपत के लिए पर्याप्त है. भारत घरेलू मांग को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करता है. आयात पर निर्भरता कुल आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत से अधिक है. खाद्य मंत्रालय ने कहा कि आयात शुल्क बढ़ाने का निर्णय घरेलू तिलहन किसानों को बढ़ावा देने के लिए सरकार के चल रहे प्रयासों का हिस्सा है. विशेषकर अक्टूबर 2024 से बाजारों में आने वाली सोयाबीन और मूंगफली की नयी फसलों के कारण यह कदम उठाया गया है.