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भारतीय ज्ञान परंपरा में योग की महती भूमिका : कुलपति

कहा- स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास

संस्कृत विश्वविद्यालय में योग के साथ संगोष्ठी आयोजित

दरभंगा। योग की महत्ता पर संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में योग की महती भूमिका रही है। पहले योग दैनिक व्यवहारिक जीवन में शामिल था। काल खंड के अंतराल में यह धीरे धीरे आम जीवन से दूर हो गया। अब पुनः इसकी महत्ता से सभी लाभान्वित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि योग शारीरिक स्तर पर शक्ति, सहनशक्ति, धीरज और उच्च ऊर्जा के विकास में मदद करता है। यह मानसिक स्तर पर बढ़ी हुई एकाग्रता, शांति और संतोष के साथ खुद को सशक्त बनाता है जिससे आंतरिक और बाहरी सामंजस्य स्थापित होता है।

कुलपति ने कहा कि योग समत्व की भावना विकसित करने की प्रेरणा देता है । उन्होंने ज्ञानयोग,कर्मयोग, भक्तियोग का भी वितरित विवेचन किया। इसी क्रम में उन्होंने यह भी कहा कि अन्य पाश्चात्य देशों ने असाध्य रोगों को बढ़ावा दिया है जबकि भारत ने विश्व को जीने के लिए योग बताया।
वहीं, कुलसचिव प्रो0 ब्रजेशपति त्रिपाठी ने भी योग की महत्ता को विस्तार से रेखांकित किया और सभी से योग व योगासन की क्रियाओं से जुड़ने की अपील की। उन्होंने यम, नियम व आसनों समेत खासकर सूर्य नमस्कार से होने वाले फायदे के बारे में गहनता से बताया। उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि विषय प्रवर्तन करते हुए धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो0 दिलीप कुमार झा ने भी योग एवं योगासन पर विस्तार से फोकस किया और इसे भारतीय संस्कृति व दर्शन का अभिन्न अंग बताया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सभी को शुभकामनाएँ भी दी। डॉ० यदुवीर स्वरुप शास्त्री के संचालन में सम्पादित संगोष्ठी में स्वागत भाषण डॉ नवीन कुमार झा ने दिया जबकि धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस समन्वयक डॉ सुधीर कुमार झा ने प्रस्तुत किया। इसके पूर्व दरबार हॉल में ही योग प्रशिक्षक शशि भूषण गुप्ता एवं शशि रंजन कुमार ने उपस्थित सभी कर्मियों व पदाधिकारियों को विभिन्न मुद्राओं में योग कराया।

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