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‘मंदिर हो या दरगाह, सार्वजनिक जगह से हटाना होगा’, बुलडोज़र कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट

डेस्क : सुप्रीम कोर्ट ने आज बुलडोज़र कार्रवाई से जुड़ी एक सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सार्वजनिक सुरक्षा सड़कों, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले धार्मिक ढांचों से अधिक महत्वपूर्ण है. SC ने भारत की धर्मनिरपेक्ष स्थिति की पुष्टि की और इस बात पर जोर दिया कि बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान पर उसके निर्देश सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होंगे, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने यह टिप्पणी उस समय की, जब वे अवैध निर्माण के खिलाफ बुलडोज़र कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रहे थे. जस्टिस गवई ने कहा, “चाहे मंदिर हो या दरगाह, यह सब हटाना होगा… जन सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है.”

दरअसल, हाल के वर्षों में कई राज्यों ने अपराधियों से जुड़े ढांचों को ध्वस्त करने की प्रवृत्ति अपनाई है, जिससे यह चिंता बढ़ी है कि यह किसी विशेष समुदाय या धर्म के खिलाफ लक्षित कार्रवाई हो सकती है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में आरोपी होने के नाते बुलडोज़र कार्रवाई को सही नहीं ठहराया जा सकता, चाहे अपराध गंभीर हो. उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व नोटिस जारी करना आवश्यक है, जिससे प्रक्रिया में निष्पक्षता बनी रहे.

इससे पहले 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि बिना अनुमति के देश में किसी भी संपत्ति को नहीं ध्वस्त किया जाएगा. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक इसकी अनुमति न हो, तब तक 1 अक्टूबर तक बुलडोज़र कार्रवाई को रोक दिया जाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि वह यह तय करेगा कि नगर निगम के कानूनों के तहत कब और कैसे संपत्तियों को ध्वस्त किया जा सकता है.

 

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