प्राच्य-विद्या एवं संस्कृत-शास्त्रों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन एक सफल प्रयास- डॉ. विनय कुमार झा
सेमिनार में प्रस्तुत बेहतरीन शोध-पत्रों की जांच कर आईएसबीएन प्राप्त सम्पादित ग्रन्थ में होगा प्रकाशन- डॉ. घनश्याम
अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार में 296 प्रतिभागियों ने ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया अपना शोध पत्र- प्रो. जीवानन्द
दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के पीजी संस्कृत विभाग, वीएसजे कॉलेज, राजनगर तथा एमएलएस कॉलेज, सरिसव- पाही, मधुबनी के संयुक्त तत्वावधान में जुबली हॉल में “संस्कृतशास्त्र एवम् उसके विविध आयाम” विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अन्त में संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. घनश्याम महतो की अध्यक्षता में समापन समारोह आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व वेद विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार मिश्र, वक्ता के रूप में साहित्य विभाग के प्राध्यापक डॉ. रीतेश कुमार चतुर्वेदी तथा व्याकरण विभाग की प्राध्यापिका डॉ. साधना शर्मा, आयोजन सचिव प्रो. जीवानन्द झा, संयोजक डॉ. कृष्ण कान्त झा, समन्वयक डॉ. आरएन चौरसिया तथा विभागीय प्राध्यापिका डॉ. मोना शर्मा आदि ने अपने विचार रखे। अतिथियों का स्वागत पाग एवं चादर से किया गया। इस अवसर पर डॉ. ममता स्नेही, डॉ योगेश्वर साह, डॉ दयानन्द मेहता, डॉ नन्द किशोर ठाकुर, डॉ प्रणीता बनर्जी, डॉ पुष्पक, डॉ जयपाल कुमार यादव, डॉ संजीत कुमार राम, मणिपुष्पक घोष, सदानंद विश्वास, विद्याधर सिंह, रानी, ब्यूटी, जिग्नेश, बालकृष्ण, प्रहलाद, मंजू अकेला, योगेन्द्र पासवान, उदय कुमार उदेश आदि अति सक्रिय रहे।
अपने संबोधन में डॉ. विनय कुमार मिश्र ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन शैक्षणिक यज्ञ- ज्ञान है। प्राच्य विद्या एवं संस्कृत- शास्त्रों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु इस सेमिनार का आयोजन एक सफल प्रयास है। संस्कृत मानव जीवन के सम्यक् संचालन एवं संवर्धन करने में सक्षम है। यह संस्कार युक्त भाषा है जो मधुर एवं गंभीर ज्ञान-विज्ञान सिखाती है। प्रतिभागियों द्वारा अनुसन्धानात्मक शोध-पत्र वाचन सदैव प्रेरणास्पद एवं ज्ञानवर्धक रहेगा। आयोजन सचिव प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि इस सेमिनार में 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें 296 ने ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया, जिनसे संस्कृत के सभी सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्षों की विस्तृत जानकारी लोगों को मिली है। इस अवसर पर उन्होंने स्वरचित विदाई गीत गाकर सबको भाव-विभोर कर दिया।
समीक्षा वक्तव्य देते हुए संयोजक डॉ. कृष्णकान्त झा ने संस्कृत के विभिन्न आयामों पर विस्तार से विचार रखते हुए कहा कि सेमिनार कम समय में बहुत से विषयों के मर्म को समझने का एक बेहतरीन माध्यम है। उन्होंने कहा कि वैदिक मंत्रों में दैवीय शक्ति होती है, जिससे हमारा जीवन और बेहतर हो सकता है। उन्होंने सेमिनार की सफलता के लिए आयोजकों एवं प्रतिभागियों को बधाई दी। डॉ रीतेश कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि संस्कृत के अनुशीलन के लिए ऐसी संगोष्ठियों का आयोजन लाभप्रद है। संस्कृत देववाणी है जो लोकहित में है।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. घनश्याम महतो ने बताया कि सेमिनार में प्रस्तुत बेहतरीन शोध पत्रों की जांच कर उन्हें आईएसबीएन युक्त सम्पादित ग्रन्थ में प्रकाशित किया जाएगा, ताकि इनकी उपयोगिता आम लोगों के बीच भी बढ़ सके। उन्होंने आग्रह किया कि जो प्रतिभागी अभी तक अपने पूर्ण शोध आलेख जमा नहीं किए हैं, वे इस माह के अंत तक विभाग में जमा कर सकते हैं।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. आरएन चौरसिया ने कहा कि समाज-निर्माण एवं विकास में संस्कृत की काफी उपयोगिता रही है। यह मानव-कल्याण की भावना एवं चरित्र-निर्माण को बढ़ावा देता है। इसके अध्ययन- अध्यापन से चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। संस्कृतनिष्ठ जीवन सादगी और उच्चता को प्राप्त करता है। विश्व की सभी समस्याओं का निदान संस्कृत में विद्यमान है। समापन सत्र का संचालन करते हुए संस्कृत- प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा ने कहा कि संस्कृत साहित्य अत्यधिक समृद्ध एवं उपयोगी है, जिसे जानना प्रत्येक मानव के लिए परम आवश्यक है। इससे भावी पीढ़ी अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों को जानकर, संजोकर सुरक्षित रख सकता है।
समापन सत्र के पूर्व आज दो तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया। प्रथम सत्र डॉ. विनय कुमार मिश्र की अध्यक्षता में हुई, जिसमें समन्वयक के रूप में डॉ. साधना शर्मा रही। वहीं दूसरा तकनीकी सत्र डॉ. आरएन चौरसिया की अध्यक्षता में हुई, जिसमें समन्वयक के रूप में डॉ रीतेश कुमार चतुर्वेदी रहे। सभी प्रतिभागियों को पत्र प्रस्तुति तथा सहभागिता प्रमाण पत्र दिया गया। समारोह का अन्त सामूहिक राष्ट्रगान के गायन से हुआ।