डेस्क : कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में पारित एक विधेयक को लेकर राजनीतिक और संवैधानिक बहस छिड़ गई है. इस विधेयक के तहत मुस्लिम समुदाय को सरकारी ठेकों में 4% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इस बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेज दिया है. साथ ही अपने नोट में यह टिप्पणी भी की है कि संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की इजाजत नहीं देता.
यह मामला ऐसे समय में राष्ट्रपति के पास भेजा गया है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्यपाल की वीटो शक्ति को लेकर अहम टिप्पणी की थी, जिससे इस कदम की संवैधानिकता को लेकर नई चर्चा शुरू हो गई है. विधेयक ‘कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट्स (KTPP)’ एक्ट में संशोधन से जुड़ा है, जिसे सिद्धारमैया सरकार ने मंजूरी देकर विधानसभा से पास कराया था. इसके अनुसार, 2 करोड़ रुपये तक के सिविल कार्यों और 1 करोड़ रुपये तक के गुड्स व सर्विसेज के अनुबंधों में मुस्लिम समुदाय को 4% आरक्षण का लाभ मिलेगा.
बिल में विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है. अनुसूचित जाति के लिए 17.5%, अनुसूचित जनजाति के लिए 6.95%, ओबीसी की श्रेणी-1 के लिए 4%, श्रेणी 2-ए के लिए 15% और श्रेणी 2-बी (मुख्यतः मुस्लिम समुदाय) के लिए 4% आरक्षण निर्धारित किया गया है.
बीजेपी ने इस विधेयक को पूरी तरह धर्म आधारित और असंवैधानिक बताया है. पार्टी ने इसके विरोध में राज्यभर में प्रदर्शन भी किए हैं. विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी इसे धार्मिक आधार पर भेदभावपूर्ण बताते हुए कड़ी आलोचना की और जोर दिया कि इस तरह का आरक्षण “स्वीकार्य नहीं” है.