साहित्य

कविता : सारा आसमान तुम्हारा है… (सन्ध्या सिंह)

तुम अपने आपको मत बांधो, क्योंकि लोग काफी हैं इसके लिए वो तुमको रोकेंगे, तुमको टोकने, पीछे खीचेंगे बोलेंगे ये सबकुछ नागवारा है लेकिन तुम मत रुकना मत झुकना क्योंकि सारा आसमान तुम्हारा है। तुम्हें बखूबी याद दिलाई जाएंगी समय समय पर तुम्हारी हदें लेकिन मत सुनना कभी उन सबकी दौड़ना, ठहरना, लेकिन फिर से […]

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कविता : ‘बापू जी’ (नागेंद्र सिंह चौहान)

बापू जी हम सब आपका सपना साकार करने वाले हैं बापू जी हम सब बेकार नहीं, विकास करने वाले हैं बापू जी हम सब आपके चश्मे से भारत स्वच्छ करने वाले हैं बापू जी हम सब आपकी फोटो वाले नोट से काम कराते हैं सच बापू जी आप आते यहां तो होते कितना खुश और […]

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कहानी : पिरामिड की हंसी (धर्मवीर भारती)

वह कला के प्रति जीवन का पहला विद्रोह था। मिस्र के राजदूत ने घूम-घूमकर देश- देश में घोषणा की – “मिस्र की राजकुमारी कला को कृत्रिम और नश्वर समझती है । उसके मत में जीवन की यथार्थ बाह्य रूपरेखा कला से अधिक महत्वपूर्ण है। उसका विश्वास है कि कल्पना के सुकुमार उपासक, कलाकार जीवन का […]

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कहानी : शहतूत का पेड़ (खुशवंत सिंह)

विजय लाल सवेरे जल्दी उठने का आदी था। वो कौओं की पहली कर्कश कांव-कांव से जाग जाता था, और जब वो अपनी स्टडी की खिड़की के पर्दे हटाता था तो उसे सामने सड़क की टिमटिमाती रोशनियों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता था। घटते चांद की आँखरी कुछ सुबहों में उसकी कालोनी के चौरस लॉन […]

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कहानी : प्रायश्चित (भगवती चरण वर्मा)

अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। […]

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कहानी : आदमी नहीं टूटता (अखिलेश)

जिस दिन वह जेल से छूटा था. मुहल्ले में पटाखे दगे थे. कसाई टोला वालों ने चंदा इकट्ठा कर रोशनी का इंतजाम किया था. फाटक बड़ा सुन्दर बना था. वह लड़ा था दयाल सेठ से. जुम्मन मियाँ के लिए…. दयाल सेठ ने नुक्कड़ के पास वाली जमीन खरीद ली थी. उसके पास ही जुम्मन का […]

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कहानी : पिंजरा (उपेंद्र नाथ अश्क)

शांति ने ऊबकर काग़ज़ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उठकर अनमनी-सी कमरे में घूमने लगी। उसका मन स्वस्थ नहीं था, लिखते-लिखते उसका ध्यान बँट जाता था। केवल चार पंक्तियाँ वह लिखना चाहती थी; पर वह जो कुछ लिखना चाहती थी, उससे लिखा न जाता था। भावावेश में कुछ-का-कुछ लिख जाती थी। छ: पत्र वह फाड़ […]

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कहानी : चीफ की दावत (भीष्म साहनी)

आज मिस्टर शामनाथ के घर चीफ की दावत थी। शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए, मुँह पर फैली हुई सुर्खी और पाउडर को मले और मिस्टर शामनाथ सिगरेट-पर-सिगरेट फंूकते हुए, चीजों की फेहरिस्त हाथ में थामे, एक कमरे से दूसरे […]

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कहानी : एक टोकरी-भर मिट्टी (माधवराव सप्रे)

किसी श्रीमान ज़मींदार के महल के पास एक ग़रीब अनाथ विधवा की झोपड़ी थी। ज़मींदार साहब को अपने महल का अहाता उस झोपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोपड़ी हटा ले, पर वह तो कई ज़माने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोपड़ी […]

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हिंदी साहित्य की कालजयी कहानियों में से एक : हूक (चन्द्रगुप्त विद्यालंकार)

(एक) जब तक गाड़ी नहीं चली थी, बलराज जैसे नशे में था। यह शोर-गुल से भरी दुनिया उसे एक निरर्थक तमाशे के समान जान पड़ती थी। प्रकृति उस दिन उग्र रूप धारण किए हुए थी। लाहौर का स्टेशन। रात के साढ़े नौ बजे। कराची एक्सप्रेस जिस प्लेटफ़ार्म पर खड़ी थी, वहाँ हज़ारों मनुष्य जमा थे। […]