अपने मन के भावों को
शब्दो में जो कहता हूँ।
जीवन के अनुभवों को
कलम से जो लिखता हूँ।
सुख दुख दोनों जीवन में
जो आते जाते रहते है।
फिर भी इस दुनियां में यारो
सदा ही खुश रहता हूँ।।
दीप जलता हूँ घर-घर में
पर खुद अंधेरे में रहता हूँ।
लोगों के सुख दुख में
खुदको शामिल करता हूँ।
पर खुद के दर्द को यारों
कभी व्यां नहीं करता हूँ।
इसी तरह का संदेश यारों
कमल से अपनी लिखता हूँ।।
कितना कुछ लिख चुका
पर लिखने का कोई अंत नहीं।
देश दुनिया की बातो का
लोगों कभी भी अंत नहीं।
किस-किस की हम बात करें
सभी को दुखदर्द होता है।
पर जीवन के कालचक्र में
हम सबको जीना पड़ता है।।
डॉ. संजीव कुमार राॅय
असिस्टेंट प्रोफेसर (पॉलिटिकल साइंस), बीएनएम कॉलेज, बडहिया, लखीसराय, मुंगेर यूनिवर्सिटी, मुंगेर