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संस्कृत को व्यवहार में लाएं : कुलाधिपति

दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में मंगलवार को दरबार हॉल में आयोजित सीनेट की 47वी बैठक की अध्यक्षता करते हुए माननीय कुलाधिपति राजेन्द्र विश्ववनाथ आर्लेकर ने सभी मान्य सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप सभी विद्वतजन हैं। यह विद्वानों की सभा है। विश्वविद्यालयों का समेकित विकास जिस तरह होना चाहिए वह नहीं हो सका है। इसका समाधान कैसे होगा, इसपर हमसभी को सोचना होगा। विश्वविद्यालय के हित में सीनेटरों का बड़ा कर्तव्य है, इस पर भी विचार आवश्यक है। उन्होंने संस्कृत को पुरातन भाषा कहते हुए जोड़ा कि इसे सभी रोज के व्यवहार में लाएं। तभी इसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी और विश्व स्तर पर इसे मुकम्मल स्थान मिलेगा। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को हम हिंदी नहीं भी सिखाते हैं तो वे बोल लेता है। बड़ा होकर ही वे उसमें दक्ष हो पाता है। तो ऐसे में अगर हमलोग संस्कृत में विचारों का रोज आदान प्रदान करेंगे तो बेशक यह भाषा सर्वसुलभ हो जाएगी। इससे इसका मान भी बढ़ेगा और विलुप्त होने से भी यह बच जाएगी।

संस्कृत को संस्कृति का वाहक बताते हुए मा0 कुलाधिपति ने तमाम प्रशासकीय कार्यों को संस्कृत में ही सम्पादित कराने को कहा। यहां तक कि आंतरिक संचिकाओं की टिपण्णी व पत्राचार भी संस्कृत में ही करने का उन्होंने आह्वान किया। उन्होंने आगाह किया कि अन्यथा की स्थिति में विपरीत वातावरण ही बना रहेगा।
इसी क्रम में उन्होंने खुलासा किया कि जब वे हिमाचलप्रदेश के राज्यपाल थे तो वहां के राजभवन कर्मियों के लिए संस्कृत सम्भाषण शुरु कराया गया था। हर्ष का विषय यह रहा कि कुछ दिनों बाद ही वहां के कर्मी फाइलों में संस्कृत में ही टिपण्णी करने लगे। तो क्या यहां यह सम्भव नहीं है? जरूरत है इस ओर कदम बढ़ाने की।
मा0 कुलाधिपति ने कहा कि सीनेट सदस्यों को भी संस्कृत का ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए विश्ववविद्यालय में उन्होंने संस्कृत सम्भाषण शिविर का आयोजन करने के लिए कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय से कहा। साथ ही उन्होंने कहा कि वे स्वयं इस सम्भाषण शिविर में आएंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय के विकास एवं इसकी गतिविधियों के सम्यक् संचालन का दायित्व यहाँ के पदाधिकारियों के अतिरिक्त सीनेट के सदस्यों का भी है। परीक्षाओं को ससमय सम्पन्न कराने में उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन को सहयोग करना चाहिए।
वहीं, उन्होंने कहा कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि भावी पीढ़ी की जिम्मेदारी हमसभी पर है। उनके भविष्य को खराब करने का अधिकार हमें नही है। इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन को आपका सहयोग जरूरी है। बैठक के बाद भी आपका इस ओर कर्तव्य बनता है।
इसी क्रम में उन्होंने कहा कि सीनेट की बैठक में भाग लेने के बाद क्या हमसभी विश्वविद्यालय की प्रगति, शैक्षणिक वातावरण में सुधार के लिए सोचते हैं, शायद नहीं। इस पर गौर करने की जरूरत है।
मा0 कुलाधिपति ने अपने अभिभाषण में यह भी कहा कि विश्वविद्यालय महाविद्यालय नहीं है। इसलिए यहां शोध कार्यों पर विशेष जोर देने की जरूरत है। यहां अनेक न्यास स्थापित हों और बहुविषयक पढ़ाई भी हो।
उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि मा0 कुलाधिपति ने संस्कृत विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय की काफी सराहना की। उन्होंने कुलपति प्रो0 पांडेय को बहुत ही कुशल व दक्ष विद्वान बताते हुए कहा कि चयन समिति ने जो विश्वास व भरोसा इनके ऊपर जताया है , हम उम्मीद करते हैं कि वे उसको अवश्य पूरा करेंगे।
उन्होंने पुनः इसे दोहराया कि सीनेट की दो बैठकें होनी चाहिए। एक बजट सत्र और दूसरा शैक्षणिक सत्र। निकट भविष्य में शैक्षणिक सत्र आयोजित करने के लिए उन्होंने कहा। इसमें शामिल होने के लिए मा0 कुलाधिपति ने अपनी सहमति भी प्रदान कर दी। सभी मान्य सदस्यों ने मा0 कुलाधिपति के प्रति आभार जताया एवम उनकी उपस्थिति को गौरवपूर्ण बताया।

DR. PRABHAKAR JHA