S C on Poor Bail Amount: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने करीब तीन साल पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस के सामने मंच से कहा था कि जमानत राशि नहीं होने के कारण गरीब आदिवासी बेल मिलने के बावजूद जेल में बंद हैं.बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसका अपडेट लेकर मामले का स्वत: संज्ञान लिया और अब दिवाली के त्योहार पर एक अच्छी खबर आई है. गरीबों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक यूनिक एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) तैयार कर ली है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने निर्देश दिया है कि किसी अपराध के लिए गिरफ्तार और मुकदमे की सुनवाई के दौरान जेल में बंद कोई भी गरीब व्यक्ति अगर जमानत के लिए पैसे दे पाने में असमर्थ है तो सरकार उसकी रिहाई सुनिश्चित कराएगी. स्पष्ट कहा गया है कि सरकार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से जमानत राशि उपलब्ध कराएगी.यह नई एसओपी सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मित्र (एमीकस क्यूरी) के सुझावों को शामिल कर तैयार की है. जी हां, जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एस.सी. शर्मा की पीठ ने न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के अलावा एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी के सुझावों को शामिल किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर तब ध्यान दिया था, जब उसे पता चला कि हजारों की संख्या में विचाराधीन कैदी ऐसे हैं जो जमानत मिलने के बावजूद सिर्फ इसलिए जेल में पड़े हैं क्योंकि वे जमानत बॉन्ड नहीं भर पा रहे हैं.
SC पीठ का निर्देश – जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) एक लाख रुपये तक की जमानत राशि भर सकता है और अगर निचली अदालत ने इसे एक लाख रुपये से ज्यादा मुकर्रर किया है तो वह इसे कम करने के लिए आवेदन दायर करेगा.बैंक अकाउंट चेक करेंगे फिर…दिशानिर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी विचाराधीन कैदी को जमानत मिलने के सात दिन के भीतर जेल से रिहा नहीं किया जाता है तो जेल अधिकारी डीएलएसए सचिव को सूचना देंगे. इसके बाद वह तुरंत एक शख्स को यह सत्यापित करने के लिए नियुक्त करेंगे कि विचाराधीन कैदी के बचत खाते में पैसे हैं या नहीं.अगर अभियुक्त के पास पैसे नहीं हैं तो जिला स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति रिपोर्ट मिलने की तारीख से पांच दिन के भीतर DLSA की सिफारिश पर जमानत के लिए धनराशि जारी करने का निर्देश देगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां अधिकार प्राप्त समिति यह सिफारिश करती है कि विचाराधीन कैदी को ‘गरीब कैदियों को सहायता योजना’ के तहत वित्तीय सहायता का लाभ दिया जाए, वहां एक कैदी के लिए 50,000 रुपये तक की अपेक्षित राशि निर्धारित तरीके से निकालने और संबंधित न्यायालय को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जा सकता है.