दरभंगा (नासिर हुसैन)। गीत साहित्य को जीवंत बनाने वाली विधा है। यह साहित्य और समाज के बीच पनप रही दूरी को पाटने में सर्वथा सक्षम है। गेयधर्मिता में सोलह श्रृंगार का सौंदर्य निहित होता है। मैथिली में गीत लेखन की निरंतरता इसका जीवंत प्रमाण है। यह बात रविवार को मैथिली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अशोक कुमार मेहता के काव्य संग्रह ‘पंछी बनी गगन केर’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए मैथिली के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. भीमनाथ झा ने कही।
उन्होंने कहा कि डॉ. मेहता रचित गीत संग्रह ‘पंछी बनी गगन केर’ पाठकों को नवीन ऊर्जा प्रदान करने वाला है। इस काव्य संग्रह में रचनाकार ने अपने सृजन सामर्थ्य से बखूबी अवगत कराया है। संग्रह में संकलित पचास सृजन पुष्प के साथ इसके भाव का जीवंत चित्रण करती अनुप्रिया के रेखाचित्र इसकी विशेषता हैं।
इससे पहले रचनाकार की धर्मपत्नी पुष्पलता कुमारी ने मंचासीन अतिथियों के साथ मिलकर रचना संग्रह का लोकार्पण किया। मौके पर रचनाकार ने संग्रह के पहले एवं अंतिम गीत को सस्वर प्रस्तुत किया। विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने बताया कि डॉ. मेहता के रचना संग्रह में पारंपरिक शब्दों का प्रयोग यह सद्य: संकेत करता है कि रचनाकार अपनी मातृभाषा के धरोहर शब्दों को जीवंत बनाये रखने के प्रति कितने संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. मेहता ने अपनी इस कृति में एक सुंदर पहल की है, जो न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि आने वाले युवा रचनाकारों के लिए अनुकरणीय भी है।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि गैर-साहित्यिक कार्य में व्यस्त रहने के बावजूद साहित्य सृजन के प्रति डॉ. अशोक कुमार मेहता की लगनशीलता यह साबित करती है कि उनका अपनी मातृभाषा के प्रति कितना गहरा लगाव है। उन्होंने कहा कि वर्तमान अमानवीय दौर में जहां मानवता खत्म हो रही है, रचनाकार ने प्रेम बंधन को आधार बनाकर व्यक्ति को प्रकृति से जोड़ने का उत्कृष्ट कार्य किया है।
संग्रह की समीक्षा करते हुए डॉ. अमलेंदु शेखर पाठक ने कहा कि आज साहित्य अकादमी से सम्मानित गीतकार उपेंद्र ठाकुर मोहन की जयंती पर डॉ. अशोक कुमार मेहता के गीत संग्रह का लोकार्पण होना एक सुखद संयोग है। समाज के लिए प्रेम गीत सिर्फ साहित्यिक या दैहिक सौंदर्य मात्र न होकर नैसर्गिक भी हो, इसे ध्यान में रखते हुए डॉ. मेहता ने आशावादी गीतों का भावपूर्ण सृजन किया है। यह न सिर्फ यथार्थ के साथ शाश्वत अवधारणा का पोषक है, बल्कि डॉ. मेहता के गीतों में ठेठ मैथिली शब्दों का प्रयोग करने से यह काव्य गगन का पंछी बनकर मैथिली साहित्य की श्रीवृद्धि करने वाला साबित होगा।
धन्यवाद ज्ञापन मोहित ठाकुर ने किया। कार्यक्रम में डॉ. अरुण कुमार सिंह, डॉ. सुरेश पासवान, गणपति झा, प्रो. रमेश झा, डॉ. योगानंद झा, डॉ. मुरलीधर झा, डॉ. मंजर सुलेमान, एसएम रिजवानुल्लाह, डॉ. दमन कुमार झा, डॉ. सुनीता झा, चंद्रेश, प्रवीण कुमार झा एवं रामेश्वर महतो सहित अन्य मौजूद रहे।