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तमिलनाडु : कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन की ली तलाशी, दो बहनों को जबरन रखने का मामला

डेस्क : कोयंबटूर के थोंडामुथुर स्थित जग्गी वासुदेव (सदगुरु) के ईशा फाउंडेशन के आश्रम में 150 पुलिसकर्मियों ने रेड की. इसका नेतृत्व कोयंबटूर के सहायक उपाधीक्षक ने किया. यह कार्रवाई मद्रास हाई कोर्ट द्वारा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों पर रिपोर्ट मांगे जाने के एक दिन बाद हुई है. इंडियन एक्सप्रेस ने पुलिस अधिकारियों के हवाले से कहा कि आश्रम के सभी निवासियों का विस्तृत सत्यापन और कमरों की तलाशी ली गयी. खबरों के अनुसार छापेमारी उस याचिका के बाद की गयी, जिसमें एक रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ एस कमराज ने दावा किया था कि उनकी दो बेटियां, गीता कमराज और लता कमराज फाउंडेशन में जबरन रखी गयी हैं.

प्रोफेसर ने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन लोगों पर मानसिक नियंत्रण कर उन्हें संन्यासी बना रहा है. उनके परिवारों से उन्हें दूर कर रहा है. याचिका पर सुनवाई के क्रम में कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव (सदगुरु) के जीवन में मौजूद विरोधाभासों पर सवाल उठाये. जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी शिवगणनम ने पूछा कि सदगुरु जिन्होंने अपनी बेटी की शादी कर उसे सुखी जीवन दिया है, अन्य युवतियों को सिर मुंडवाकर संन्यासी जीवन जीने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं?

प्रोफेसर कमराज ने अपनी याचिका में अपनी बेटियों की पेशेवर उपलब्धियों का जिक्र किया है. याचिका के अनुसार, उनकी बड़ी बेटी यूके के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से मेक्ट्रोनिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट हैं.उसने 2008 में अपने पति से तलाक ले लिया था. उसके बाद ईशा फाउंडेशन में योग कक्षाएं लेना शुरू किया था. इसके बाद उनकी छोटी बेटी (सॉफ्टवेयर इंजीनियर) भी आश्रम में रहने लगी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि फाउंडेशन ने उनकी बेटियों को ऐसा भोजन और दवाइयां दीं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति कमजोर हो गयी. उन्होंने परिवार को दरकिनार कर दिया.

लेकिन जब दोनों बेटियां कोर्ट में पेश हुईं तो दावा किया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं. उन पर कोई प्रेशर नहीं है. हालांकि न्यायाधीश उनकी बातों से पूरी तरह से सहमत नहीं हुए. जस्टिस शिवगणनम यह जानना चाहते थे कि अपनी बेटी की शादी करने और उसे अच्छा जीवन देने वाले व्यक्ति ने दूसरों की बेटियों को संन्यासी जीवन जीने के लिए क्यों प्रेरित किया है? जानकारी के अनुसार याचिका में फाउंडेशन के एक डॉक्टर के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले का भी उल्लेख किया गया है

याचिकाकर्ता के अनुसार, उस डॉक्टर पर आदिवासी सरकारी स्कूल की 12 लड़कियों से छेड़छाड़ का आरोप है. ईशा फाउंडेशन के अधिवक्ता के राजेंद्र कुमार ने कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि वयस्क अपने जीवन के फैसले स्वयं लेने का अधिकार रखते हैं, जिसमें आध्यात्मिक मार्ग चुनना भी शामिल है. कोर्ट द्वारा इस प्रकार के निजी फैसलों में हस्तक्षेप किया जाना अनुचित है, क्योंकि दोनों बेटियां अपनी मर्जी से वहां रह रही हैं.

 

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