डेस्क : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें कहा गया था कि किसी महिला के स्तन पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार की कोशिश नहीं माना जा सकता. शीर्ष अदालत ने इस फैसले को “संवेदनहीनता की पराकाष्ठा” बताया और केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार से इस पर जवाब मांगा है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मासिह शामिल थे, ने हाई कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, “हमें यह कहते हुए पीड़ा हो रही है कि यह फैसला न्यायिक संवेदनशीलता की पूरी तरह से अनदेखी करता है. यह कोई त्वरित निर्णय नहीं था, बल्कि चार महीने के विचार-विमर्श के बाद दिया गया था, जिससे स्पष्ट होता है कि इस पर गहन मंथन किया गया था. हम आमतौर पर इस स्तर पर रोक लगाने से बचते हैं, लेकिन चूंकि फैसले के कुछ अंश कानून के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध हैं और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, इसलिए हम इसे रोक रहे हैं.”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस फैसले से असहमति जताते हुए कहा, “कुछ निर्णय ऐसे होते हैं जिन पर रोक लगाने की स्पष्ट वजह होती है.” वहीं, न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी की, “यह बेहद गंभीर मामला है. जज द्वारा दिखाई गई संवेदनहीनता चौंकाने वाली है. यह फैसला तो सिर्फ समन जारी करने के स्तर पर दिया गया था! हमें खेद है कि हमें जज के खिलाफ इतने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.”
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान में लिया, जब ‘वी द वीमेन ऑफ इंडिया’ नामक संगठन ने हाई कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई. इसके अलावा, पीड़िता की मां ने भी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे इस केस के साथ जोड़ दिया गया है.
यह विवादित फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 17 मार्च को दिया था. वे इस मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत समन जारी करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
हाई कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 21 में कहा गया था, “आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने पीड़िता के स्तनों को पकड़ने और उसके निचले वस्त्र को खींचने की कोशिश की. इसके लिए उन्होंने उसकी पायजामे की डोरी भी तोड़ दी और उसे पुलिया के नीचे घसीटने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप के कारण वे उसे छोड़कर भाग गए. केवल इन तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आरोपियों ने बलात्कार करने का संकल्प कर लिया था, क्योंकि इसके अलावा उनके खिलाफ कोई अन्य कृत्य नहीं किया गया.”
इसी पैराग्राफ समेत फैसले के कुछ अन्य हिस्सों को सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनहीन और कानून के खिलाफ बताते हुए फिलहाल रोक लगा दी है.
अब इस मामले में केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि संवेदनशील मामलों में न्यायिक फैसलों को पूरी सहानुभूति और कानूनी विवेक के साथ लिया जाना चाहिए. अदालत इस मामले में आगे की सुनवाई कर यह तय करेगी कि हाई कोर्ट का यह फैसला पूरी तरह निरस्त किया जाए या नहीं.