अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लनामिविवि के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में परिचर्चा का हुआ आयोजन
दरभंगा (नासिर हुसैन) : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर युवा कवयित्री अंकिता आनन्द द्वार रचित काव्यसंग्रह ‘अब मेरी बारी’ पर परिचर्चा का आयोजन मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो० मंजू की अध्यक्षता में हुई।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रो० राय ने कहा आपको अपने अधिकारों के लिए स्वयं लड़ना होगा। बर्दाश्त करने से आप और शोषण के शिकार होते हैं। अपनी कद्र स्वयं कीजिए और यह सुनिश्चित कीजिए कि समाज निर्माण में मेरी भी भूमिका हो। महिला दिवस किसी एक विशेष दिन पर ही नहीं बल्कि हर रोज़ होना चाहिए।
अपने काव्य संग्रह ‘अब मेरी बारी’ पर चर्चा करते हुए कवयित्री अंकिता आनन्द ने कहा कि हिंदी से मुझे विशेष लगाव है। मैं एक पत्रकार हूँ और अपनी कविताओं के माध्यम से समाज की उन समस्याओं को प्रकाश में लाने का काम कर रही हूँ जिससे स्त्री–पुरुष में एकता स्थापित हो सके । लेखक को हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए। मैंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के हर पहलू को सामने रखने का प्रयास किया है। हम जिस परस्थिति में भी रहे अपने समाज के लिए कुछ- न -कुछ कर सकते हैं। आगे स्त्री–पुरुष के संबंधों को लेकर उन्होंने कहा कि पितृसत्ता पुरुषों के लिए भी सही नहीं है सभी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने स्वरचित कविता ‘जमाना बदल गया’, ‘सेवा में आजाद औरतें’, ‘मकाम’, ‘गौ राशि की कन्या’, ‘भले घर की लड़की’, ‘मैं और वे’ और ‘जवाबतलवी’ जैसी कई कविताओं का पाठ किया।
परिचर्चा के अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो० उमेश कुमार ने कहा कि नारी की अमूर्त भावनाओं को समझ पाने की कसक और उसकी सच्ची छवि की तलाश में अंकिता की कविताएं कई प्रश्न छोड़ जाती हैं, जिन्हें आज के संदर्भ में गहराई से समझने की आवश्यकता है। इस पुस्तक की सबसे छोटी कविता “लड़ना है तुम से, लड़े क्यों नहीं तुम मेरे लिए?” के संबंध में प्रो० कुमार ने कहा यह तो कैप्सूल वाद से आगे की कविता है। अगर भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में नारी का सम्मान होता तो यह काव्य संग्रह ‘अब मेरी बारी’ लिखने की आवश्यकता नहीं होती।
इस मौके पर विभाग के वरीय प्राचार्य डॉ सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने कहा कि आज का दिन आधी आबादी के मुक्ति के लिए संकल्प लेने का दिन है ,लेकिन महिलाओं की मुक्ति सभी की मुक्ति होने के साथ ही हो सकती है। हमारे यहाँ स्त्री के लिए बड़ी–बड़ी बातें लिखी गई हैं । किंतु धरातल पर कुछ भी नहीं है। अंकिता ने भोगे हुए यथार्थ को अपने काव्य संग्रह में लिपिबद्ध किया है, जिसमें प्रगतिशीलता का स्वर विद्यमान है।
डॉ आनंद प्रकाश गुप्ता ने इस अवसर पर कहा कि कवियत्री अंकिता की कविता समसामयिक कविता है। आज के समाज की जो छटपटाहट है वह इनकी कविताओं में दिखाई पड़ती है। इनका काव्य- संग्रह स्त्रियों को समाज में और भी सशक्त करने में सहायक होगा।
अंग्रेजी विभाग के वरिष्ठ प्राचार्य डॉ पुनीता कुमारी ने कहा कि सृष्टि हमेशा स्त्री–पुरुष के संतुलन से ही चला है। अगर पारिवारिक स्तर पर ही महिलाओं को पुरुषों के समान माना जाय तो सामाजिक स्तर पर उनके साथ भेदभाव नहीं होगा।
विभागीय शिक्षिका मंजरी खरे ने इस मौके पर कहा कि आज भी महिलाओं को उतनी स्वतंत्रता नहीं मिलती है जितना मिलना चाहिए। सिर्फ स्त्रियों के शरीर और भावों का ही नहीं बल्कि उसके बौद्धिक क्षमता का भी सम्मान होना चाहिए। स्त्रियों को आगे बढ़ने के लिए स्वयं से ही पहल करना पड़ेगा।
प्रो० अमरेंद्र कुमार शर्मा ने कवयित्री अंकिता के जीवन–संघर्षों पर प्रकाश डाला। जिससे उनके कवि व्यक्तित्व का पता चलता है।
इस मौके पर विभाग के नेट/जे.आर.एफ उत्तीर्ण छात्र छात्राओं को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया जिसमें शिवानी कुमारी, अपर्णा कुमारी, दीपक कुमार, दर्शन सुधाकर, भावना कुमारी,अमरेंद्र कुमार और विभागीय महिला शोधार्थी कंचन कुमारी, सुभद्रा कुमारी, निशा कुमारी, पुष्पा कुमारी, बबीता कुमारी, अंशु कुमारी, संध्या रॉय आदि को सम्मानित किया गया।
इस मौके पर कई प्रो० पुनीता कुमारी, प्रो० मुनेश्वर यादव, मानस बिहारी वर्मा, डॉ अखिलेश्वर कुमार सिंह, डॉ नीतू कुमार, डॉ रघुवीर कुमार, डॉ मनोज कुमार, प्रो० अमरेंद्र कुमार शर्मा आदि शिक्षक, शोधार्थी सियाराम मुखिया, दुर्गानंद ठाकुर, रोहित कुमार, जयप्रकाश कुमार, मलय नीरव एवं बड़ी संख्या में छात्र–छात्राएं उपस्थित थे।