डेस्क : एंटीबायोटिक्स दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बैक्टीरिया को ‘सुपरबग’ में बदल रहा है. यानी ऐसे बैक्टीरिया जिन पर कुछ समय बाद कोई दवा असर नहीं करती.
ICMR की नई रिपोर्ट में सामने आया है कि एंटीबायोटिक दवा अब धीरे-धीरे बेअसर साबित हो रही है. एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का दुरुपयोग, चाहे वे एंटीबायोटिक्स हों, एंटीवायरल हों या एंटिफंगल हों, ने इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध पैदा कर दिया है.
निमोनिया और सेप्सिस जैसी बीमरियों के लिए जी जाने वाली कार्बापेनम नामक एंटीबायोटिक अब बेअसर हो रही है. अधिकांश रोगियों को इस दवा से अब कोई लाभ नहीं मिल रहा है. यह कहानी सिर्फ इसी एंटीबॉयोटिक की नहीं है, बल्कि ऐसी सभी दवाएं अब कम असर कर रही है.
एंटीबायोटिक दो शब्दों ‘एंटी’ और ‘बायोस’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘एंटी लाइफ’. यानी ये दवाएं बैक्टीरिया को नष्ट कर, उन्हें बढ़ने से रोकती हैं, लेकिन हर बीमारी की वजह बैक्टीरिया नहीं होते.
वायरस और बैक्टीरिया दो अलग इन्फेक्शन हैं, इनकी दवाएं भी अलग होती हैं. वायरल इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक्स खाना सेहत के लिए खतरनाक है.
जुकाम, बुखार, गले में खराश, सिरदर्द, उल्टी, दस्त में से 80 फीसदी मरीज वायरल फीवर के होते हैं. डॉक्टर इन मरीजों को सामान्य दवाएं देते हैं, जिनसे वे 2-4 दिन में ठीक हो जाते हैं. वायरल इन्फेक्शन में कई बार एंटीवायरल दवाओं की भी जरूरत नहीं होती, जबकि लोग बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक्स निगल लेते हैं, जो कि गलत है.