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प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा : मिथिला में शिक्षा और शोध को समर्पित 42 वर्षों का गौरवशाली सफर

दरभंगा (नासिर हुसैन)। मिथिला के प्रतिष्ठित शिक्षाविद्, ईमानदारी और निष्ठा के प्रतीक प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा ने 31 जनवरी, 2025 को 42 वर्षों की उत्कृष्ट शैक्षणिक सेवा के बाद सेवानिवृत्ति ग्रहण की। शिक्षा, शोध, मैथिली भाषा और संस्कृति के संवर्धन में उनके अतुलनीय योगदान ने बिहार की अकादमिक संरचना को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है शैक्षणिक उत्कृष्टता के ध्वजवाहक, प्रो. मिश्रा ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (एल.एन.एम.यू.) से रसायन विज्ञान में प्रथम श्रेणी प्रथम स्थान प्राप्त किया, और 1990 में भौतिक-अकार्बनिक रसायन में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अपने अद्वितीय शिक्षण और शोध कार्यों के माध्यम से उन्होंने हजारों विद्यार्थियों और शोधार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान किया है। शैक्षणिक और प्रशासनिक नेतृत्व अपने करियर के दौरान, उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों को संभाला, जिनमें शामिल हैं,​प्रधानाचार्य, एम.एल.एस.एम. कॉलेज,संयोजक, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, डीन, विज्ञान संकाय, एल.एन. मिथिला विश्वविद्यालय, प्रो. एवं विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय रसायन विज्ञान विभाग
​•​निदेशक, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी संस्थान
​•​संस्थापक एवं निदेशक, उन्नत नैनोविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र, संस्थापक एवं निदेशक, विदेशी भाषा संस्थान, एल.एन. मिथिला विश्वविद्यालय उनका नेतृत्व केवल शिक्षण और शोध तक सीमित नहीं था। उन्होंने एम.एल.एस.एम. कॉलेज को संबद्धता दिलाने,उसे विश्वविद्यालय का अंग बनाने और वहां स्नातकोत्तर शिक्षा की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिक्षा और शोध में अभूतपूर्व योगदान प्रो. मिश्रा ने शिक्षाजगत को समृद्ध बनाने के लिए अनेक प्रयास किए, जिनमें शामिल है। उत्तर बिहार में डीएवी विद्यालयों की स्थापना, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा मिला। और कार्यक्रम को बिहार लाने में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे हज़ारों छात्र विज्ञान की ओर प्रेरित हुए और विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिकों को मिथिला में लाकर विद्यार्थियों को उनसे जोड़ने का कार्य किया। कोविड-19 महामारी के दौरान फेसबुक लाइव के माध्यम से भारत में पहली बार अभिनव शिक्षण पद्धति शुरू की, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहा। हजारों विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की, जिससे शिक्षा को आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए सुलभ बनाया।
दरभंगा में ओलंपियाड परीक्षा केंद्रों की स्थापना, जिससे छात्रों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिला। तीन इंस्पायर कैंपों का सफल आयोजन, जिससे 600 से अधिक छात्रों को विज्ञान के प्रति प्रेरित किया गया।
• KVPY (किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना) केंद्र बिहार में नहीं था, इसे बिहार और दरभंगा में लेकर आए, जिससे छात्रों को इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेने का अवसर मिला।
• मृतप्राय WIT (Women’s Institute of Technology) को पुनर्जीवन देकर इसे एक सशक्त संस्थान बनाया, जिससे मिथिला की छात्राओं को तकनीकी शिक्षा का लाभ मिला।

पुरस्कार एवं सम्मान

उनके योगदान को कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें शामिल हैं। साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार (2016), पुस्तक “भारत भाग्य विधाता” के लिए। अनुपम सिन्हा सर्वश्रेष्ठ रसायन शिक्षक पुरस्कार (2018), एसोसिएशन ऑफ केमिस्ट्री टीचर्स, मुंबई द्वारा।
• प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अभिनव ऑनलाइन शिक्षण के लिए प्रशंसा। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा स्पेक्ट्रोस्कोपी पर पुस्तक के मैथिली अनुवाद हेतु सराहना। अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा “मैन ऑफ द ईयर” (2002, 2003) का सम्मान विशेष उपहार – जीवनी पुस्तक
सेवानिवृत्ति के अवसर पर, उनके परिवार ने उन्हें एक विशेष उपहार दिया। उनकी पुत्री डॉ. अर्चना और पुत्र अमर सौरभ एवं अमित रंजन ने प्रो. मिश्रा के जीवन, संघर्ष और उपलब्धियों पर आधारित एक जीवनी पुस्तक भेंट की। इस अवसर पर भावुक होते हुए प्रो. मिश्रा ने कहा यह पुस्तक मेरे जीवन के उस सफर का साक्षी है, जिसमें मैंने शिक्षा को अपना ध्येय बनाया। अपने विद्यार्थियों, परिवार और समाज के प्रति मेरी जो भी जिम्मेदारियां थीं, उन्हें निभाने का प्रयास किया। इस पुस्तक को देखकर मुझे गर्व और संतोष हो रहा है कि मेरी यात्रा को मेरे ही बच्चों ने शब्दों में पिरोया है। यह मेरे लिए किसी भी पुरस्कार से बढ़कर है।” मैथिली भाषा और सांस्कृतिक संवर्धन में योगदान प्रो. मिश्रा ने शिक्षा के साथ-साथ मैथिली भाषा के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी पुस्तक “भारत भाग्य विधाता” बिहार के विश्वविद्यालयों के बी.ए. (मैथिली) के पाठ्यक्रम में शामिल की गई है। उन्होंने मैथिली पत्रिका “बसात” की स्थापना की और मैथिली साहित्य एवं विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए कई लेख प्रकाशित किए। उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान भी उल्लेखनीय है, जिसमें शामिल हैं। यू.एस. आर्मी रिसर्च लैब, एयरफोर्स रिसर्च लैब, मिशिगन टेक यूनिवर्सिटी और राइस यूनिवर्सिटी (अमेरिका) में वैज्ञानिक यात्रा। पेरिस, बाली, ताशकंद और दुबई में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में शोध पत्र प्रस्तुत किए। प्रेरणादायक विरासत एल.एन. मिथिला विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद, सीनेट और सिंडिकेट के निर्वाचित सदस्य के रूप में उन्होंने उच्च शिक्षा के विकास के लिए प्रभावशाली भूमिका निभाई। वे कई प्रतिष्ठित विज्ञान संगठनों के पैनलिस्ट और विशेषज्ञ भी रहे हैं। उनकी ईमानदारी, निष्ठा और अकादमिक नेतृत्व ने उन्हें एक प्रेरणास्रोत बना दिया है। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे शिक्षा, अनुसंधान और मैथिली भाषा के उत्थान के लिए कार्यरत रहेंगे। उनका सपना एल.एन. मिथिला विश्वविद्यालय को शैक्षणिक उत्कृष्टता का केंद्र बनाना और युवाओं को नवाचार, सहयोग और तकनीकी शिक्षा से जोड़ना है। मिथिला की शिक्षण और शोध समुदाय, उनके छात्र और प्रशंसक उनके 42 वर्षों के अतुलनीय योगदान के लिए हृदय से आभार व्यक्त करते हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

 

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