डेस्क :बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्ट्राइक रेट का 90% से ऊपर रहना संगठनात्मक पराक्रम का भी परिणाम है। चुनाव से पहले के हालात पर गौर करें तो नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी को खत्म करना सबसे बड़ी चुनौती थी। साथ ही गठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बँटवारे और सबको साथ लेकर चलने की चुनौती भी थी। ऐसे में अमित शाह ने यह जिम्मेदारी अपने हाथ में ली। बिहार में अमित शाह ने 4–5 महीने पहले ही मोर्चा संभाल लिया था। अमित शाह के कमान संभालने के बाद भाजपा और सहयोगियों के बीच कई दौर की वार्ता हुई। अमित शाह JD(U), LJP (RV), RLSP और HAM को एक मंच पर लेकर आये। सीट-दर-सीट जातीय समीकरण का सटीक विश्लेषण किया गया और संभावित विवादों को समय रहते शांत किया गया। यह वह काम है जो सामान्यतः चुनाव घोषित होने के बाद शुरू होता है लेकिन अमित शाह ने महीनों पहले इसकी नींव तैयार कर दी थी।
