सेमिनार में डॉ. कृष्णकांत, प्रो. जीवानन्द, डॉ. चौरसिया, डॉ. शिवानंद, डॉ. प्रियंका राय, मुकेश झा आदि ने रखे महत्वपूर्ण विचार

दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्त्वावधान में “भारतीय दर्शन और विज्ञान” विषय पर पीजी संस्कृत विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ कृष्णकान्त झा की अध्यक्षता में सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें सीएमबी कॉलेज, घोघरडीहा, मधुबनी के प्रधानाचार्य प्रो जीवानन्द झा, विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ शिवानन्द झा, दर्शनशास्त्र की प्राध्यापिका डॉ प्रियंका राय, संस्कृत-प्राध्यापक डॉ आर एन चौरसिया, फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, संस्कृत अध्ययन केन्द्र के शिक्षक अमित कुमार झा आदि ने अपने विचार रखें। सेमिनार का उद्घाटन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ, जिसमें पीजी रसायनशास्त्र के प्राध्यापक डॉ सोनू राम शंकर, सब-डिविजनल डिग्री गवर्नमेंट कॉलेज, बेनीपुर, दरभंगा के शिक्षक डॉ मारुति नंदन भारद्वाज, डॉ संजय कुमार तथा डॉ चंदन कुमार, संस्कृत विश्वविद्यालय के शोधार्थी- राम सिया कुमारी तथा नेहा कुमारी सहित 60 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे, जिन्हें फाउंडेशन की ओर से प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।

मुख्य वक्ता डॉ. प्रियंका राय ने कहा कि व्यापक अर्थ में दर्शन और विज्ञान एक ही है। भारतीय दर्शन और विज्ञान के बीच कोई विरोध नहीं है, बल्कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जिन तथ्यों को आज का विज्ञान प्रमाणित कर रहा है, वे दर्शन में पहले से ही मौजूद रहे हैं। भारतीय दर्शन अंतर्दृष्टि है तो विज्ञान बाह्य दृष्टि है। डॉ प्रियंका ने पीपीटी के माध्यम से सभी छह आस्तिक दर्शनों का विज्ञान से अंतर्संबंधों को विस्तार से बताते हुए कहा कि दर्शन किसी विषय की गहनतम दृष्टि है, जिसका अंतिम लक्ष्य मानव के दुःखों का स्थाई अंत कर मोक्ष या मुक्ति प्रदान करना है। भारतीय दर्शन दुःख से प्रारंभ होकर दुःख के अंत पर पूर्ण होता है। हमारा दर्शन जीवन जीने का एक तरीका है। व्यापक अर्थ में दर्शन स्वयं ‘परम सत्य का विज्ञान’ है।

उद्घाटन संबोधन में प्रो. जीवानन्द झा ने कहा कि दर्शन और विज्ञान में अन्योन्याश्रय संबंध है। भारतीय दर्शन में आधुनिक विज्ञान के सभी भागों की चर्चा है। यदि हम दर्शन के एक पहलू को भी जान लें तो विज्ञान के बड़े भाग को जान सकते हैं। मुख्य अतिथि डॉ शिवानन्द झा ने कहा कि दर्शन अपने आप में विज्ञान ही है, जिसका आधुनिक विज्ञान नकल कर रहा है। भारतीय परंपरा में विज्ञान और दर्शन को कभी अलग नहीं माना गया, बल्कि दोनों एक ही ज्ञान-परंपरा के दो पक्ष रहे हैं।

अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. कृष्णकांत झा ने कहा कि दर्शन का मूल आधार वेद है। वेदों का सार गीता सभी दर्शनों का एकमात्र आधार माना जा सकता है। विज्ञान प्रयोग और प्रमाण से सत्य सिद्ध करता है तो दर्शन अनुभव और आत्मबोध से सत्य की पहचान करता है। दोनों का लक्ष्य एक ही है- सत्य और ज्ञान की प्राप्ति। स्वागत एवं विषय प्रवेश करते हुए संगोष्ठी के संयोजक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि भारतीय दर्शन एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला जीवन दर्शन है। जहां विज्ञान भौतिक जगत के रहस्यों को समझने का प्रयास करता है, वहीं दर्शन आध्यात्मिक सत्य को जानने की कोशिश करता है। भारतीय दर्शन केवल बौद्धिक चिंतन नहीं है, बल्कि यह जीवन के अंतिम सत्य की खोज है, जिसे तत्त्वदर्शन कहा जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन और विज्ञान दोनों भारत की सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत के दो स्तंभ हैं, जिनका विकास हजारों वर्षों में हुआ है और वे एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि भारतीय दर्शन की आत्मा संस्कृत में बसती है। संस्कृत साहित्य में ज्ञान-विज्ञान के सभी तत्त्व मौजूद हैं। भारतीय दर्शन और विज्ञान में गहरा संबंध है, जिसमें दर्शन की गहनता और विज्ञान की प्रयोगशीलता दोनों मिलकर भारतीय ज्ञान-परंपरा को अद्वितीय बनाते हैं। कार्यक्रम का संचालन संस्कृत-प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा ने किया, जबकि मंगलाचरण श्रवण कुमार ठाकुर ने।
