संयोजकों के साथ ऑनलाइन बैठक में दिए कई टिप्स व टास्क, संस्कृत सम्भाषण पर जोर, जागरूकता लिए चलेगा अभियान, संयोजकों से सीधे सम्पर्क में रहेंगे कुलपति
दरभंगा (नासिर हुसैन)। संस्कृत के साथ अन्य प्राच्य विषयों के ज्ञान संवर्धन व प्रचार-प्रसार के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय अपने योगदान तिथि से ही सचेष्ट व समर्पित हैं। संस्कृत कैसे जन समुदाय की आम भाषा बने और यहां तक कि कैसे इस भाषा मे निपुणता पायी जाए, इसको लेकर अक्सर वे नए-नए आयामों पर लगातार छात्रों को और शिक्षकों के साथ ही बुद्धिजीवियों को जागरूक करते रहते हैं। इसी कड़ी में संस्कृत प्रचार-प्रसार व विस्तार कार्यक्रम के तहत आज एक ऑनलाइन बैठक आयोजित कर हाल ही में मनोनीत महाविद्यालयों के संयोजकों एवं सहसंयोजकों को अपने कार्यालय कक्ष से सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रो. पांडेय ने कहा कि संस्कृत भाषा की शिक्षा पर हमलोगों को अधिक कार्य करना होगा। इसके लिए उन्होंने भाषा शिक्षण के मुख्य चारों कौशल श्रवण, भाषण, पठन एवं लेखन में बच्चों को कुशल बनाने के कई टिप्स भी दिए। साथ ही, संस्कृत व संस्कृति के अलावा शास्त्र ज्ञान के प्रचार-प्रसार को उन्होंने जरूरी बताया। उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि संस्कृत प्रचार मंच के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन बैठक में कुलपति प्रो. पांडेय ने टिप्स के साथ संयोजकों को टास्क भी दिए। इसके लिए उन्होंने निर्देश दिया कि अगले छह माह की कार्ययोजना बनाकर कॉलेजों के आसपास के कम-से-कम पांच -छह बच्चों को ही सही, संस्कृत सम्भाषण से जोड़ना होगा। उन्हें नियमित संस्कृत शिक्षा के लिए तैयार करना होगा। यह जरूरी अतिरिक्त गतिविधि पठन-पाठन कार्य के साथ जारी रखनी है। कुलपति प्रो. पांडेय ने कहा कि वे खुद संयोजकों के सीधे सम्पर्क में रहेंगे, ताकि उनको विशेष शैक्षणिक सहायता मिल सके। उन्होंने मौजूदा स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कहा कि भाषा व्यवहार के अभाव में सम्भाषण कौशल क्षमता विकसित नहीं हो पाती है। रोजमर्रा की जिंदगी में भी शब्दों के प्रयोग से सम्भाषण में कुशल बना जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज की इस बैठक का मूल उद्देश्य ही है संस्कृत व संस्कृति का प्रचार प्रसार करना और भारतीय ज्ञान परम्परा को बढ़ाना। संस्कृत प्रचार मंच के विश्वविद्यालय संयोजक डॉ. रामसेवक झा के संयोजन में आहूत इस पहली ऑनलाइन बैठक में महाविद्यालय स्तर के सभी संयोजक एवं सहसंयोजक शामिल हुए और संस्कृत शिक्षा को सफल बनाने का पुरजोर समर्थन किया।