दरभंगा। मिथिलांचल कांग्रेस का गढ़ दरभंगा रहा है। कभी दरभंगा की 10 की 10 सीट कांग्रेस ने जीती थी। हालात बदलते गए पुराने लोगों ने कांग्रेस से फायदा उठाने के बाद दूसरी पार्टी में चले गए। जिससे क्षेत्रीय पार्टी का विकास हुआ। और क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय पार्टी पर भारी पड़ने लगी। कांग्रेस 35 वर्षों से यह दंश झेल रही है। राहुल गांधी ने पूरी मेहनत और लगन से बिहार में बदलाव लाने की कोशिश की है। दरभंगा में भी उन्होंने बहुत बड़ी रैली निकाली। लेकिन कुछ दीमक अभी भी कांग्रेस को बढ़ने नहीं दे रही है। मैं और मेरा परिवार नही किसी कार्यकर्ता से सरोकार वाले कहावत पर अभी भी चल रही है। क्योंकि अभी भी प्रभारी प्रव्यक्षक दिल्ली वाले उन्हीं नेताओं की निगरानी मे रहते हैं। कार्यकर्ता से सिर्फ भेट कुछ मिनिट्स की होती है। इतने कम समय में कोई इंसान किसी को क्या समझ पाएगा। तो वही होता है जो हमारे प्रदेश के नेता दीमक वाले लोग बताते है। इलेक्शन का समय है लेकिन जिला के जो भी कार्यकर्ता 25 से 45 वर्षों वाले है उन्हें कुछ न पता है न पार्टी उनके संपर्क में है। सिर्फ इनका उपयोग धरना प्रदर्शन,माल्यार्पण नमन इत्यादि तक रह गया है।रामनारायण झा, रामपुकार चौधरी,रेयाज अली खान, मो असलम,गणेश चौधरी,डॉ. सुरेश राम, प्रो.शिवनारायण पासवान आदि कुछ उदाहरण है जो पार्टी के जड़ से जुड़े है। लेकिन सूत्रों का कहना है इन जमीनी नेताओं से कोई राय मशवरा नहीं ली जा रही है। यही स्थिति रही तो 2020 में जो हुआ 2025 में भी हो सकता है।