असामयिक निधन से संस्कृत विश्वविद्यालय परिवार मर्माहत
कुलपति समेत सभी ने जताया शोक, बताया अपूरणीय क्षति
दरभंगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य किशोर कुणाल का रविवार की सुबह असामयिक निधन हो जाने से संस्कृत जगत मर्माहत है। पूरे विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा शोक व्यक्त किया है। कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया है। आचार्य कुणाल ने 31 अगस्त 2001 से 29 फरवरी 2004 तक कुलपति के रूप में संस्कृत विश्वविद्यालय में अपनी सेवा दी थी।
उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि उनके कार्यकाल में प्रशासनिक व शैक्षणिक नवाचार की लंबी फेहरिस्त रही है। इसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। शास्त्र संरक्षण योजना के तहत व्याकरण एवं दर्शन के महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन एवं वेद मंत्रों का सीडी निर्माण उन्होंने ही शुरू कराया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, नयी दिल्ली से अनुबंध कर एतदर्थ राशि की व्यवस्था कर पुरातात्विक मुख्य भवन राज विलास पैलेस के जिर्णोद्धार की व्यवस्था उन्हीं के कारण सम्भव हो पायी। इतना ही नहीं, पुस्तकालय का संवर्धन, गेस्ट फैकल्टी के अन्तर्गत पहली बार प्राच्य विषयों के साठ शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला उन्हीं का था। महाविद्यालयों की शैक्षणिक एवं प्राशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सघन निरीक्षण की शुरुआत तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की धारा टू-एफ एवं 12-बी के अन्तर्गत सोलह महाविद्यालयों का पंजीकरण, शोध अर्हता परीक्षा की शुरुआत, सत्र का नियमितीकरण एवं कम्प्यूटराईज्ड अंक पत्रों की व्यवस्था उन्हीं की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम था। संस्कृत विश्वविद्यालय का फलक और बढ़े इसके लिए उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में सेमिनार का आयोजन कर यहां के दो महत्वपूर्ण ग्रन्थों का लोकार्पण कराया था। शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्रों एवं सामान्यजन के लिए पहली बार संस्कृत संभाषण प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन एवं कार्यालय में भी संस्कृत के प्रयोग की शुरुआत आचार्य कुणाल ने ही करायी थी। स्थानीय जनों के आर्थिक सहयोग से एक सौ छात्रों के भोजन की निःशुल्क व्यवस्था,शिक्षा शास्त्र की पढ़ाई की शुरुआत के लिए वे काफी चितिंत रहते थे। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्वीकृति तथा राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र की प्राप्ति एवं राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण परिषद, भुवनेश्वर को प्रस्ताव उन्होंने ने भेजा था। इसके अलावा सेवानिवृत्ति की तिथि को ही सेवांत लाभ प्रदान करने की शुरुआत उन्हीं की सोच थी। वहीं, मुख्यालय में लम्बे अन्तराल के बाद दर्जनों सेमिनार व संगोष्ठियों का आयोजन के साथ साथ दीक्षांत समारोह का आयोजन कराने का श्रेय आचार्य कुणाल को ही जाता है।
कुलपति प्रो. पांडेय ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि महज एक पखवाड़ा पूर्व ही उनकी मुलाकात आचार्य कुणाल से पटना में हुई थी। संस्कृत व विश्वविद्यालय की बेहतरी समेत अन्य विषयों पर उनसे मार्गदर्शन लिया था। उन्होंने कई मुद्दे पर सहयोग का आश्वासन दिया था लेकिन क्रूर शक्ति ने हमसे उन्हें छीन लिया। उनका असमय चला जाना हमलोगों के लिए तथा प्राच्य शिक्षा के लिए बेहद ही अपूरणीय क्षति है। वहीं आचार्य कुणाल के कार्यकाल में उपकुलसचिव तथा अध्यक्ष छात्र कल्याण के पद पर काम कर चुके धर्मशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रध्यापक प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत विश्विद्यालय को मुख्य धारा में लाने वाले प्रो. रामकरण शर्मा के बाद आचार्य कुणाल ही थे। वे हमेशा संस्कृत व संस्कृति के संवर्धन के लिए ही सोचते थे। उनका निधन पूरे सनातनी समाज के लिए शोक व दुख का विषय है।
इसी तरह विश्वविद्यालय के डॉ. शिवलोचन झा, डॉ. ब्रजेशपति त्रिपाठी, डॉ. दिनेश झा, डॉ. पवन झा, डॉ. दिलीप कुमार झा, डॉ. दीनानाथ साह,डॉ. पुरेन्द्र वरिक, डॉ. सुनील कुमार झा, डॉ. दिनेश्वर यादव, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, डॉ. उमेश झा, डॉ. रामसेवक झा, डॉ. सुधीर कुमार झा समेत अन्य कर्मियों ने भी शोक व्यक्त किया है।