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लखनऊ : ‘अवधी समागम’ में हुआ चार पुस्तकों का विमोचन

दो दर्जन से अधिक अवधी लेखकों का किया अभिनंदन

लखनऊ। सैप प्रकाशन एवं साहित्यकार समिति के संयुक्त तत्वाधान में प्रेस क्लब लखनऊ अवधी समागम का आयोजन किया गया। इसे चार पुस्तकों का विमोचन हुआ। साथ ही, दो दर्जन से अधिक अवधी लेखकों को सम्मानित भी किया गया।

अवधी समागम का उ‌द्घाटन मुख्य अतिथि पद्‌द्मश्री डॉ. विद्याबिंदु सिंह, प्रोफेसर डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित, डॉ. उमाशंकर शुक्ल शितिकंठ, डॉ ज्ञानवती दीक्षित, डॉ. राम बहादुर मिश्र व डॉ. रश्मिशील ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित करके किया। इसमें विनय दास के अवधी उपन्यास ‘संत न मोल बिकाय’, दीपक सिंह का कहानी संग्रह ‘कजरी’, डॉ ज्ञानवती दीक्षित की ‘दीदी कै पाती’ व ओपी वर्मा ओम की ‘चेतना के स्वर, का विमोचन हुआ।

समागम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. विद्याबिंदु सिंह ने कहा कि संत न मोल बिकाय, कजरी, दीदी कै पाती पुस्तकें अवधी गद्य कोष में ऐतिहासिक वृद्धि के लिए जानी जायेंगी। विधा के स्तर पर इन सबमें एक नवाचार है। विनय दास का उपन्यास संत न मोल बिकाय में सतनाम पंथ के सतनामी संतों की प्रामाणिक जानकारी है। यह उपन्यास कथावाचक की शैली में अपनी बोलचाल की मिठास भारी अवधी में लिखी गई है। ‘कजरी कहानी देशज स्त्री-विमर्श का आख्यान है। यह हमारे बदलते गांवों की तस्वीर पेश करती है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने लोकार्पित पुस्तकों के विषय में सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विनय दास का अवधी उपन्यास ‘संत न मोल बिकाय’ इस्लामीकरण व धर्मातरण का प्रतिरोध करता है। यह यदि एक और औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता का शर्मनाक दस्तावेज है तो दूसरी ओर सतनामी संत जगजीवन दास साहब के सामाजिक कार्यों की गौरव गाथा भी है। दीपक सिंह के कहानी संग्रह कजरी के संघर्ष को लक्षित करते हुए कहा कि कजरी केवल एक किताबी चरित्र ही नहीं है, बल्कि ग्रामीण समाज के स्त्रियों के सोच में आए बदलाव का गंभीर आख्यान है। वहीं, ‘दीदी कै पाती’ में डॉ ज्ञानवती दीक्षित अवधी साहित्य में रिक्त पत्र और संस्मरण जैसी विधाओं को भरने की सार्थक कोशिश की है। जबकि ओपी वर्मा ओम की काव्यकृति चेतना के स्वर को पढ़कर पाठक भीतर तक आंदोलित हो उठता है।

डॉ. उमाशंकर शुक्ल शितिकण्ठ ने कहा संत न मोल बिकाय उपन्यास लोक संस्कृति की गहरी पड़ताल करने के साथ अवधी भाषा के मानक रूप की ओर दृढ़ता से कदम बढ़ाता है। जबकि कजरी की कहानी ग्रामीण जीवन के संघर्ष और बदलाव का दस्तावेज है। डॉ० राम बहादुर मिश्र, प्रदीप सारंग, डॉ श्याम सुंदर दीक्षित, अजय प्रधान व सूर्य प्रसाद शर्मा निशिहर आदि ने भी समागम को संबोधित किया। कार्यक्रम के अंत में 24 अवधी लेखकों को स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र व पांच पुस्तकों का सेट भेंट करके उन्हें सम्मानित किया गया।

ये अवधी लेखक हुए सम्मानित

डॉ. ज्ञानवती दीक्षित, डॉ. उमाशंकर शुक्ल शितिकंठ, डॉ. रश्मिशील, अनीस देहाती, सूर्य प्रसाद शर्मा, आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप, रमाकांत तिवारी रामिल, नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान, डॉ. अनामिका श्रीवास्तव, सुधा द्विवेदी, विनोद मिश्र, भूपेन्द्र दीक्षित, अरुण तिवारी, प्रदीप तिवारी धवल, अजय साहू, डॉ. अर्जुन पाण्डेय, डॉ. अशोक अज्ञानी, डॉ. प्रदीप कुमार शुक्ल, डॉ. शेषमणि शुक्ला एवं नूतन वशिष्ठ आदि।

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