डेस्क :भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को हुए संघर्षविराम के बावजूद, भारत ने स्पष्ट किया है कि सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) का निलंबन यथावत रहेगा. सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लिया गया था, और भारत का आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ का रुख अब भी कायम है.
यह संधि, जिसे 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित किया गया था, सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल बंटवारे को नियंत्रित करती है. भारत ने 23 अप्रैल को इस संधि को निलंबित कर दिया था, जिससे पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ा है.
भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि संघर्षविराम केवल सैन्य कार्रवाइयों के लिए है, और अन्य सभी प्रतिबंध, जैसे कि वीजा सेवाओं का निलंबन, व्यापार प्रतिबंध और अटारी सीमा चौकी का बंद रहना, यथावत रहेंगे.
पाकिस्तान ने भारत के इस निर्णय की आलोचना की है और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है. पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि भारत का यह कदम उनके देश की जल सुरक्षा के लिए खतरा है.
पहलगाम हमले के बाद भारत ने जब पाकिस्तान के साथ 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता रद्द किया था तब पाकिस्तानी एक्सपर्ट्स कह रहे थे कि भारत एकतरफा तरीके से समझौते को रद्द नहीं कर सकता है और समझौते का मध्यस्थ विश्व बैंक भारत को मजबूर कर सकता है कि वो समझौते को स्थगित करने का अपना फैसला बदल दे. लेकिन अब विश्व बैंक ने पाकिस्तान को झटका देते हुए साफ कह दिया है कि वो भारत को मजबूर नहीं कर सकता कि वो अपना फैसला बदले.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह रुख पाकिस्तान पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है, ताकि वह आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाए. हालांकि, यह स्थिति दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकती है.
संघर्षविराम के बावजूद, भारत और पाकिस्तान के बीच विश्वास की कमी और आपसी संदेह की स्थिति बनी हुई है. सिंधु जल संधि का निलंबन इस बात का संकेत है कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा.
अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में दोनों देश किस प्रकार से इस मुद्दे को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं