भगवान शिव आदियोगी तथा कृष्ण योगीराज बनकर हमें स्वयं पर नियंत्रण करना सिखाया- योगाचार्य इ राम औतार तायल
शान्ति एवं आनन्द प्रदाता योगाभ्यास को जो जितना अपनाता है, वह उतना ही सुखी एवं समृद्ध जीवन जी पाता है- डॉ. घनश्याम
शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाला योग सर्वश्रेष्ठ जीवन शैली जो सुख एवं समृद्धि का मूल आधार- डॉ. चौरसिया
दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “योग : सुख- समृद्धि का आधार” विषय पर ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में एक कार्यशाला का आयोजन विभागीय सभागार में पीजी संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो की अध्यक्षता में किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में उत्तर प्रदेश के मेरठ से योगाचार्य एवं योग- गवेषक इंजीनियर राम औतार तायल, विषय प्रवेशक एवं संयोजक डॉ आर एन चौरसिया, स्वागत कर्ता डॉ ममता स्नेही, धन्यवाद कर्ता डॉ मोना शर्मा, विशिष्ट वक्ता अमित कुमार झा तथा संचालन कर्ता सदानंद विश्वास आदि ने विचार रखें। दीप प्रज्वलित कर उद्घाटित कार्यशाला में अतिथियों का स्वागत पाग एवं चादर से किया गया। उद्घाटन, योगाभ्यास तथा प्रश्नोत्तर सत्रों में आयोजित इस कार्यशाला में 50 से अधिक शिक्षक एवं छात्र- छात्राएं ऑफलाइन मोड में, जबकि 75 से अधिक व्यक्तियों ने ऑनलाइन मोड में भाग लेकर लाभ उठाया, जिनमें भूगोल विभागाध्यक्ष डा अनुरंजन, डॉ रश्मि शिखा, डॉ सुनील कुमार, डॉ अशोक कुमार, प्रो रामागर प्रसाद, डॉ श्याम मूर्ति भारती, शोधार्थी मनी पुष्पक घोष, मधुसूदन शर्मा एवं चंद्रशेखर झा, ओम प्रकाश, प्रियंका, सुजीत, अनुभव, जिग्नेश, प्रहलाद, सिंटू, श्रीमन नारायण, भक्ति रानी, श्वेता, लक्ष्मी, कृष्ण मोहन, सुभाष, अंजलि, मनीष, पिंकी, दिलखुश, प्रणव, राघव, सोनिया, खुशबू, नरेश, विद्यासागर भारती, मंजू अकेला, योगेंद्र पासवान, उदय कुमार उदेश, दीपेश रंजन, सुभाष, कृष्णा, कुंदन, हिमांशु, रवि, रोशन, सावित्री, प्रीति, रमण, अनिल, माधव, विकास, सतीश, कमलेश, सीमा, श्रुति, सुभाष, शैलेन्द्र सहित 125 से अधिक व्यक्ति शामिल हुए।
मुख्य वक्ता इ राम औतार तायल ने कहा कि यूं तो हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख समृद्धि चाहता है, पर यह नियमित योगाभ्यास से ही संभव है, क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति द्वारा इसे अपनाने से रोग नहीं होता है और रोगी व्यक्ति ठीक हो जाता है। प्राणायाम द्वारा शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाकर हम कम भोजन कर भी अधिक ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने रोगों की चर्चा करते हुए कहा कि सर्वाधिक बीमार अमीर व्यक्ति एवं अधिकारी लोग ही पड़ते हैं, क्योंकि वे शारीरिक श्रम कम और मानसिक चिंताएं ज्यादा करते हैं। योग की प्राचीनता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान शिव आदियोगी तथा कृष्ण योगीराज बनाकर हमें स्वयं पर नियंत्रण करना सिखाए है। आसान और प्राणायाम को जीवन में नियमित रूप से अपनाकर हम स्वस्थ एवं सुखी जीवन जी सकते हैं। इस अवसर पर उन्होंने राजयोग एवं हठयोग की विशेष रूप से चर्चा करते हुए ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, अनुलोम- विलोम, भ्रामरी, पूरक, कुंभक एवं रेचक आदि का अभ्यास कराया।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. घनश्याम महतो ने कहा कि शान्ति एवं आनन्द प्रदाता योगाभ्यास को जो जितना अपनाता है, वह उतना ही सुखी एवं समृद्ध जीवन जी पाता है। योग चिकित्सा से गठिया, वात, साइटिका, लकवा सहित कई असाध्य रोगों- डायबिटीज, मोटापा, हाइपरटेंशन तथा हृदयरोग आदि का इलाज संभव है। उन्होंने कहा कि योग से काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि का निरोध होता है। शरीर को इससे जोड़ने पर परम शांति की ओर बढ़ने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। विशेष रूप से बीमार व्यक्तियों की जिंदगी में नया सवेरा लाने में योगाभ्यास रामबाण है। इससे शरीर और मन का बेहतरीन प्रबंधन होता है। वहीं विशिष्ट वक्ता अमित कुमार झा ने योग के महत्व को बताते हुए पीजी संस्कृत विभाग में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा संचालित संस्कृत अध्ययन केन्द्र के सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा कोर्स में 12 सौ रुपए में अंतिम तिथि 30 नवंबर से पहले ऑनलाइन नामांकन लेकर अधिक से अधिक लाभ उठाने का आह्वान किया।
विषय प्रवेशक डॉ. आरएन चौरसिया ने कहा कि शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाला योग मानव की सर्वश्रेष्ठ जीवन- शैली है जो सुख एवं समृद्धि का मूल आधार है। व्यापक अर्थ में योग हमारी आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम है। योगासन एवं प्राणायाम हमें हर वक्त एकदम फिट रखने में सहायता कर शरीर को अंदर से ताकतवर बनाता है और मन को निरंतर शान्ति एवं ऊर्जा प्रदान करता है। योग के द्वारा तन और मन में समन्वय स्थापित होता है, जिससे खुशहाल जीवन जीने की कला सीखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसे किसी भी अवस्था के अमीर- गरीब, शिक्षित- अशिक्षित, किसी भी धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्र के व्यक्ति अपनाकर अपने जीवन को बेहतर से बेहतरीन बना सकते हैं। यह एक अति प्राचीन विद्या है जो पूर्णतः विज्ञान भी है। इसके माध्यम से स्वस्थ्य और मूल्य आधारित समाज का निर्माण किया जा सकता है। इस अवसर पर आयोजित प्रश्नोत्तर सत्र में विशेषज्ञों ने समुचित उत्तर देकर सहभागियों को संतुष्ट किया।
अतिथि स्वागत करते हुए संस्कृत प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही ने योगदर्शन की चर्चा करते हुए कहा कि यह हमारा व्यावहारिक दर्शन है जो शरीर और मस्तिष्क दोनों को स्वस्थ्य रखता है और स्थूल शरीर का सूक्ष्म शरीर के साथ मिलन कराता है। योग शारीरिक श्रम की कमी तथा मानसिक श्रम की अधिकता के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों से बचाने में मदद करता है। सीनीयर रिसर्च फेलो सदानंद विश्वास के संचालन में आयोजित कार्यशाला में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागीय प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा ने कहा कि योग हमारे जीवन को स्वस्थ, समृद्ध एवं गौरवशाली बनता है। यह हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर हमें नयी दिशा प्रदान करता है।