साहित्य

कविता : उमंग (आशीष दीक्षित)

होली वैसे है तो उत्सव उमंगों का
मन-मयूर में उल्लासित तरंगों का
ऐसा हम मानते हैं
साधारणतया ऐसा जानते हैं
परन्तु यह वास्तव में ऐसा है
कि मन तरंगित हो उठे
रंगों से रंजित हो उठे
एक नये अनुभव से
एक नयी ऊर्जा से
यह अनायास नहीं है
यह मानव की साधारण वृत्ति का प्रयास नहीं है
वरन यह तो है ईश्वर प्रदत्त फल
वसंत में वासना पर विजय हेतु किये गये प्रयासों का
यह तो है फल मानव की सोह्म से सुवासित सांसों का
और यदि इसे साधारण वृत्ति का फल समझा गया
तो सारी उमंग होगी धूल-धूसरित
और उसकी जगह ले लेगी अराजकता
क्रोध, दुख और ईर्ष्या से पूरित।

आशीष दीक्षित (आगरा) 

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