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दरभंगा : मुरैठा के विद्यापति चौक पर ‘मिथिला विकास बोर्ड’ की मांग को लेकर आयोजित पदयात्रा के पहले चरण का हुआ समापन

दरभंगा (नासिर हुसैन) : मिथिलावादी पार्टी द्वारा मिथिला विकास बोर्ड को लेकर आयोजित पदयात्रा का पहला चरण कल जाले के अहियारी एवं कमतौल होते हुए मुरैठा में बाबा विद्यापति की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ समाप्त हुआ।

पदयात्रा को संबोधित करते हुए मिथिलावादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश भारद्वाज ने कहा कि न तो पलायन का कोई ठोस निदान अब तक निकल पाया है और न ही संवैधानिक भाषा के रूप में अब तक मैथिली को यथोचित अधिकार ही प्राप्त हो सका है। पार्टी का मुख्य एजेंडा यह है कि मिथिला का औद्योगिकीकरण और विकास हो। पौराणिक काल से ही मिथिला अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए चर्चित क्षेत्र रहा है। राज्य स्थापना के बाद ही इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की बात सोची जा सकती है। कृषि, उद्योग-धंधा, पर्यटन, शिक्षा एवं संस्कृति के विकास से ही इस क्षेत्र की दुर्दशा तथा बेरोजगारी का अंत हो सकता है तथा लोगों का पलायन रुक सकता है। परन्तु, वर्तमान सरकार मिथिला विरोधी है।

मिथिलावादी नेता विद्या भूषण ने कहा कि मिथिला के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक और भाषा के क्षेत्र में समग्र विकास के लिए मिथिला राज्य की स्थापना आवश्यक है।यह क्षेत्र सूखा और बाढ़ का निरंतर शिकार होता आ रहा है । जहां एक और खेती चौपट हो गई है, वहीं मिथिला के मजदूर पलायन करने को विवश हो रहे हैं। चीनी मिल, पेपर मिल, जूट मिल व अन्य उद्योग-धंधे आदि यहां कबाड़ का ढेर मात्र बने हुए हैं। कृषि, उद्योग-धंधा, पर्यटन, शिक्षा एवं संस्कृति के विकास से ही इस क्षेत्र की दुर्दशा तथा बेरोजगारी का अंत हो सकता है।

सुमित माउबहेटिया एवं नवीन साहनी ने कहा कि पूरे मिथिला में कृषि पर लगभग 84 प्रतिशत लोग निर्भर हैं, लेकिन एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट सिर्फ 18 प्रतिशत ही है। मिथिला में 14 चीनी मिल, 6 जूट मिल, 1 पेपर मिल, 2 सूत मिल में से अभी सिर्फ 3 चीनी मिल कार्यरत हैं, बाकी सभी बंद हैं । चीनी मिल के नाम पर पिछले 5 वर्षों में महाराष्ट्र को 22 हजार करोड़ रुपया दिया गया, लेकिन मिथिला को एक फूटी कौड़ी नहीं । बिहार का कुल बजट 2 लाख 8 हजार करोड़ है जो दिल्ली के बजट के 3 गुना से भी ज्यादा है, लेकिन राज्य सरकार इतने पैसे का क्या करती है, पता नहीं। 25 हजार करोड़ रुपए शिक्षा पर खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन सिर्फ 33 प्रतिशत बच्चे ही सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं, ऐसा क्यों ? 8 हजार करोड़ रुपए हर वर्ष बिजली के लिए खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन बिजली की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अब वक्त आ गया है कि हम सवाल करें और अपने प्रतिनिधि से जवाब मांगे। उन्होंने सभी से मिथिला विकास बोर्ड की मांग को हर प्लेटफॉर्म पर उठाने की अपील की। इस यात्रा में रवि भारद्वाज एवं राजन मिश्रा समेत बड़ी संख्या में अन्य लोग लोग शामिल थे।

 

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