दरभंगा (नासिर हुसैन)। विश्व साहित्य के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि साहित्य क्षेत्रीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और किसी क्षेत्र विशेष का सांस्कृतिक इतिहास साहित्य के माध्यम से संकलित किया जा सकता है। ये विचार सीएम कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो. मुश्ताक अहमद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में व्यक्त किये। प्रो. अहमद आईसीएसएसआर के सहयोग से उर्दू और फारसी विभाग द्वारा ‘उर्दू भाषा और साहित्य पर मिथिला संस्कृति का प्रभाव’ विषय पर आयोजित एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। प्रो. अहमद ने कहा कि कोई भी साहित्यकार एवं लेखक अपने परिवेश से अनजान नहीं रहता है और वह अपने काम में अपने परिवेश से प्राप्त प्रभावों को उजागर करता है। यहां की मिथिला संस्कृति न सिर्फ आम जीवन में देखने को मिलती है, बल्कि इसकी झलक यहां के साहित्य में भी मौजूद है। प्रो. अहमद ने कहा कि यह अध्ययन का विषय है और इस महत्वपूर्ण विषय पर जो भी लेखक अपनी राय पेश करेंगे, उन्हें दस्तावेजी रूप दिया जाएगा, ताकि यह साबित हो सके कि मिथिलांचल के उर्दू के लेखकों और कवियों ने किस तरह यहां की सामाजिक व्यवस्था से बौद्धिक और सैद्धांतिक पूंजी हासिल की है और किस तरह एक विशेष क्षेत्र की सभ्यता साहित्य में पहचानी गई है। 19वीं सदी की शुरुआत से ही इस इस प्रकार के शोध को उर्दू में जगह दी गई है। उन्होंने इस क्षेत्र के साहित्य और काव्य तथा संगोष्ठी के विषय की सराहना की।
प्रो. नदीम अहमद, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली ने कहा कि मिथिलांचल के लेखकों ने मिथिला की विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को पेश किया है और उसकी वजह से उर्दू साहित्य समृद्ध हुआ है। उर्दू के कवियों और कहानीकारों के साहित्य में पूरे मिथिला की झलक देखने को मिलती है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के उर्दू विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद अली जौहर ने कहा कि मिथिला संस्कृति ने उर्दू साहित्य को एक सांस्कृतिक पहचान दी है और यह सेमिनार एक नए विषय पर आयोजित किया जा रहा है, जिससे पूरे उर्दू जगत को लाभ होगा और नई रोशनी मिलेगी। प्रोफेसर मुहम्मद काज़िम, उर्दू विभाग, दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली ने मिथिलांचल के विशिष्ट साहित्य पर बात की और इस बात पर प्रकाश डाला कि इस संस्कृति ने उर्दू कथा लेखकों और उपन्यासकारों को कैसे प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि मिथिलांचल की बोली और यहां की संस्कृति पर उर्दू कथा लेखक सोहेल अजीमाबादी, शाने मुजफ्फरपुरी, कौसर मजहरी आदि का प्रभाव महत्वपूर्ण है।
प्रारंभ में डॉ. खालिद अंजुम उस्मानी ने सेमिनार के विषय के वैज्ञानिक और साहित्यिक महत्व पर प्रकाश डाला और प्रारंभिक टिप्पणियों के साथ सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया। उद्घाटन सभा का संचालन डॉ. फैज़ान हैदर ने किया तथा उर्दू विभाग की शिक्षिका डॉ. शबनम ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। उद्घाटन सत्र के अलावा दो तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। पहले सत्र में प्रो. नदीम अहमद, मोहम्मद अली जौहर, प्रो. आफताब अशरफ, प्रो. मुहम्मद इफ्तिखार अहमद, डॉ. शाहनवाज आलम, डॉ. क़रातुल ऐन, डॉ. मुतिउर रहमान, डॉ. अब्दुल हई, डॉ. शबनम आदि ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये। दूसरे सत्र में डॉ. नसरीन, डॉ. मसरूर हादी, डॉ. मुजाहिद इस्लाम, डॉ. अलाउद्दीन खान, डॉ. मुहम्मद मुसूफ रजा, डॉ. जसीमुद्दीन, डॉ. मनवर राही, मुहम्मद समीउद्दीन खालिक, डॉ. फैज़ान हैदर आदि ने अपने लेख प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर संगोष्ठी में उपस्थित प्रतिभागियों द्वारा पत्रिका का भी विमोचन किया गया। संगोष्ठी के आलेख शीघ्र ही पुस्तक रूप में प्रकाशित किये जायेंगे। इस अवसर पर विश्व प्रसिद्ध उर्दू शायर प्रो शाकिर खालिक ने सेमिनार के विषय के ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व पर अपने विचार व्यक्त किये और मिथिलांचल की सांस्कृतिक पहचान और उर्दू भाषा एवं साहित्य के बीच संबंधों पर चर्चा की। प्रो. खलीकी वर्षों से मिथिलांचल की सांस्कृतिक पहचान और उर्दू के संबंध पर लेख लिखते रहे हैं, जिसका जिक्र अधिकांश निबंधकारों ने किया है।
सेमिनार में डॉ. नजीब अख्तर, मोहम्मद बदरुद्दीन, डॉ. जेबा परवीन, डॉ. अमीन ओबैद, डॉ. रहमतुल्लाह अफजल आदि सहित बड़ी संख्या में दरभंगा एवं आसपास के कॉलेजों के शिक्षक एवं शोधार्थी शामिल हुए।