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पुण्यतिथि विशेष : बतौर पीएम रविवार को भी दफ्तर में काम करते थे नेहरू, आजादी से पहले ही संभाल लिया था सचिवालय का सारा काम (अवनीश मिश्र)

ज आधुनिक भारत के निर्माता, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि है। वे 17 वर्षों तक लगातार देश के प्रधानमंत्री रहे। नेहरू जी (Jawahar Lal Nehru) का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। पंडित नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने। उनके सामने देश को संगठित कर उसे विकास के मार्ग पर ले जाने की चुनौती थी। जवाहरलाल जी पूरी उम्र कड़ा संघर्ष और मेहनत करते रहे। उनका नारा भी था- ‘आराम हराम है’। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में भारत का चहुंमुखी विकास हुआ। उन्होंने देश को अंतरराष्ट्रीय गुटबाजी से हमेशा दूर रखा। सदैव शांति और संयम पर जोर दिया। जवाहरलाल जी जैसे महापुरुष का नाम इतिहास में सदैव अमर रहेगा। पंडित जवाहर लाल नेहरू जनता के प्रधानमंत्री थे, वह एक प्रबुद्ध और विद्वान नेता थे।

जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) का जन्म 14 नवंबर, 1889 को हुआ था। उनके पिता मोतीलाल नेहरू अपने समय के प्रसिद्ध वकील थे। जवाहरलाल जी की माता का नाम स्वरूप रानी था। जवाहर लाल नेहरू को अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। नेहरू 1905 में पढ़ाई के लिए ब्रिटेन चले गए थे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लॉ किया था। विदेशों में घूमते हुए ही उन्हें भारतीय संस्कृति की महानता का एहसास हुआ। उन्हें विश्व में भारत जैसा कोई और देश नज़र नहीं आया। भारत की परतंत्रता से उनको बहुत दुख होता था। वे एक देशभक्त परिवार से संबंध रखते थे, इसलिए उनमें देशभक्ति की भावना स्वाभाविक ही थी ।

सन् 1916 में लखनऊ में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेश में वे गांधी जी के संपर्क में आये। गांधी जी से मिलकर अत्यंत प्रभावित हुए। अब वे भी अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध आवाज उठाने लगे। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और भारतीय जनता की गरीबी और विवशता को निकट से अपनी आंखों से देखा। अंग्रेजी नीतियों का विरोध करने की वजह से कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने जेल में ‘भारत एक खोज’ नामक पुस्तक भी लिखी जो उनकी सर्वश्रेष्ट पुस्तक मानी जाती है। इसमें उन्होंने भारत के सम्पूर्ण इतिहास का वर्णन किया है। जवाहरलाल जी (Jawahar Lal Nehru) को बच्चों से अत्यन्त प्रेम था। इसीलिए बच्चे उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहते थे। जवाहरलाल नेहरू एक बार लंदन जाने वाले थे। उनका नाई हमेशा लेट हो जाया करता था। नेहरूजी के पूछने पर नाई ने कहा- ‘मेरे पास घड़ी नहीं है, जिसके कारण हमेशा लेट हो जाया करता हूं।’ जिसके बाद वो उसके लिए लंदन से नई घड़ी लाए थे।

जवाहर लाल (Jawahar Lal Nehru) चाहते थे कि भारतवासी आजादी के साथ-साथ खुशहाल भी हों। इसके लिये उन्होंने देश के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठाना चाहा। यह योजना वे आजादी के पहले से ही बनाते आ रहे थे। बिना योजना के कार्य करना उनके सिद्धान्त में नहीं था। सन् 1950 में योजना आयोग की स्थापना हुई। जब उन्होंने योजना बनाने की शुरूआत की थी, तब लोगों को उनपर बहुत कम विश्वास था। जैसे-जैसे योजना कारगर सिद्ध हुई, वैसे-वैसे लोगों का विश्वास बढ़ता गया। पुराने कांग्रेसी नेता चरखे और ग्रामीण उद्योगों पर विचार कर रहे थे, लेकिन जवाहरलाल भारत को आधुनिक देश बनाने में लगे थे। वह विज्ञान पर विश्वास रखते थे।

थे। वो योगासन करते थे, जिसमें शीर्षासन शामिल होता था। फिर वो कुछ देर प्रधानमंत्री हाउस के लान में टहलते थे। दिन में उनके लंच का टाइम आमतौर पर तय था लेकिन रात का डिनर अक्सर लेट होता था। वो देर से सोने वाले लोगों में थे। वो दिन में करीब 16 घंटे से ज्यादा काम करते और फाइलों को देखते हुए बिताते थे।

27 मई, 1964 को अचानक से उनकी तबियत खराब हुई। समय के आगे डॉक्टर, वैद्य सब धरे रह गए। कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। दोपहर के दो बजे थे, इस मनहूस घड़ी ने जवाहर लाल जी (Jawahar Lal Nehru) को दुनिया से हमेशा के विदा कर दिया। थोड़े दिनों बाद उनकी आखरी वसीयत प्रकाशित हुई। इसमें उन्होंने लिखा था, ‘मुझे इस विरासत पर नाज है, जो हमारी रही है और हमारी है। हम सब भारतवासी जंजीर की ऐसी कड़ी है, जो कभी नहीं टूट सकती, क्योंकि उस कड़ी में हम सब पिरोये हुए हैं। मैं इसकी बहुत इज्जत करता हूं। यह हमारी शान है, इसलिए मैं इसे कभी नहीं तोडूंगा।

इसने मुझे हिम्मत और हौसले का जो पाठ पढ़ाया है, वह मेरी निगाह में आज भी विराजमान है। मैं अपनी मनोकामना पूरी करना चाहता हूं और भारत की संस्कृति को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूं। इसलिए मेरी कथनानुसार मेरी मुट्ठी भर भस्म इलाहाबाद के पास गंगा नदी में प्रवाहित कर दी जाए। ऐसा करने से वह भस्म महासागर में पहुंचेगी, जो हिंदुस्तान को चारों ओर से घेरे है। बाकी बची मेरी भस्म को हवाई जहाज में ऊंचाई पर ले जा कर बिखेर दिया जाय, तकि भस्म भारत के उन खेतों की मिट्टी में मिले, जहां किसान मेहनत करते हैं। मैं चाहता हूं कि मेरी भस्म भारत की मिट्टी का एक अंग बन जाए।’

जवाहर लाल (Jawahar Lal Nehru) की भस्म को गंगा में प्रवाहित किया गया और आसमान में भी बिखेरा गया। इससे उनका अंत नहीं हुआ। वे आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। शान्तिवन में आज भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जवाहर ज्योति तीनमूर्ति भवन में अब भी जल रही है। यहीं पर उन्होंने कई वर्ष मेहनत और मशक्कत से काम किया था। आज भारत उनके नाम का जीता जागता स्मारक है। उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे लोगों के दिलों में कल भी थे और आज भी हैं ।