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सलमान रुश्दी : फतवा जारी होने के बाद छह महीने में बदले थे 56 ठिकाने

डेस्क : शुक्रवार को न्यूयॉर्क में विवादित किताब ‘द सैटनिक वर्सेज’ के लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला हुआ था। हमलावर ने उन पर चाकू से एक के बाद एक कई वार किए और फिलहाल उनकी हालत गंभीर बनी हुई है।
1988 में आई उनकी एक किताब के चलते उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ा था और ईरान ने उनके खिलाफ मौत का फतवा जारी किया था। इसके बाद वो कई साल तक गायब रहे थे।

1988 में रुश्दी की ‘द सैटनिक वर्सेज’ नामक किताब प्रकाशित हुई थी। इससे मुस्लिम समुदाय आक्रोशित हो गया। किताब में लिखी बातों को ईशनिंदा करार दिया गया और कई देशों में रुश्दी के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। इन प्रदर्शनों में 59 लोगों की मौत हुई थी। विरोध के चलते रुश्दी नौ सालों तक छिपे रहे थे।
किताब से भड़के ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया। इससे कूटनीतिक संकट बढ़ गया।

सलमान रुश्दी के खिलाफ फतवा जारी करते हुए खुमैनी ने दुनियाभर के मुस्लिमों से किताब के लेखक और प्रकाशक को मारने की अपील की थी। उनका कहना था कि इसके बाद किसी की भी इस्लाम के पवित्र मूल्यों का अपमान करने की हिम्मत नहीं होगी।
रुश्दी पर ईनाम की घोषणा करते हुए खुमैनी ने कहा था कि उन्हें मारने के बाद जिसे मौत की सजा होगी, वह ‘शहीद’ समझा जाएगा और सीधा जन्नत में जाएगा।

फतवा जारी होने के बाद रुश्दी की जिंदगी पूरी तरह बदल गई और उन्हें कई साल छिपकर गुजारने पड़े। शुरुआती छह महीनों में उन्होंने 56 ठिकाने बदले थे। पहचाने जाने से बचने के लिए उन्होंने अपना नाम जोशेफ एंटोन रख लिया और कड़ी सुरक्षा के बीच रहने लगे।
इस बीच उन्होंने बीच-बीच में सामने आकर अपना पक्ष रखने की कोशिश की, लेकिन उनके खिलाफ जारी प्रदर्शन बंद नहीं हुए। कई बार उन्होंने खुद को मिल रही धमकियों का जिक्र किया।

फतवा जारी होने के नौ साल बाद (1998) में ईरानी सरकार ने खुद को इससे दूर कर लिया था। दरअसल, किताब के प्रकाशन के बाद ईरान ने ब्रिटेन के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे। 1998 में दोबारा राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई और खुमैनी ने कहा कि वो रुश्दी की हत्या का समर्थन नहीं करेंगे।
इसके बाद रुश्दी धीरे-धीरे सार्वजनिक तौर पर दिखना शुरू हुए थे। किताबें लिखने के साथ वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बातें करते रहे।

सलमान रुश्दी की द सैटनिक वर्सेज सितंबर, 1988 में प्रकाशित हुई थी। प्रकाशन के एक महीने बाद ही भारत में इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उस वक्त राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे। देश में किताब के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हुए थे।
भारत इस पर पाबंदी लगाने वाला पहला देश था। इसके बाद पाकिस्तान और फिर दूसरे मुस्लिम देशों ने इस पर पाबंदी लगाना शुरू कर दिया। दक्षिण अफ्रीका में भी इस किताब पर पाबंदी लगी थी।

रुश्दी के एजेंट एंड्रयू वायली ने बताया कि उनकी सर्जरी हुई है। फिलहाल वे वेंटिलेटर पर हैं और बोल नहीं पा रहे हैं। उनकी एक आंख जा सकती है। हमले में उनकी बांह की कुछ नसें कट गई हैं और लीवर को नुकसान पहुंचा है।